Fri. May 23rd, 2025

बरसात में हर रोज तालाब बनती है राजधानी, प्रमुख चौक-चौराहों पर जलभराव; घरों-दुकानों में पानी घुसना भी आम बात

देहरादून। अनियंत्रित बसागत के बीच उत्तराखंड की राजधानी देहरादून मानसून में तकलीफ दे रही है। वैसे तो हर साल बरसात में यहां जलभराव की समस्या रहती है, लेकिन कालोनियों के विस्तार और पुख्ता ड्रेनेज सिस्टम न होने के कारण यह समस्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। इन दिनों में घंटेभर की बारिश से चारों ओर ताल-तल्लैया तैयार हो जाती है। मास्टर प्लान फाइलों में दफन है और पुरानी नालियां चोक पड़ी हैं। ऐसे में शायद ही शहर में कोई ऐसी गली या मोहल्ला हो जहां बारिश का पानी भरने की शिकायत न आ रही हो।

भारी बारिश दून में देर रात आफत बनकर आई। गर्जन के बाद लगातार हुई बारिश से पूरा शहर पानी-पानी हो गया। प्रमुख चौक-चौराहों के साथ ही तमाम गली-मोहल्ले तालाब में तब्दील हो गए। नालियां चोक और बारिश का पानी नदी की तरह सड़क पर बहने लगा। जोरदार बारिश ने शहर के ड्रेनेज सिस्टम की पोल खोल दी। बारिश के बीच चारों ओर नदियां बहने लगीं। सड़कें जलमग्न और घरों व दुकानों में भी पानी घुस आया। इसके अलावा कुछ स्थानों पर सड़कों के गड्ढों में जमा पानी भी हादसे का सबब बना बना रहा।

शहर में गतिमान पेयजल लाइन व स्मार्ट सिटी निर्माण कार्य के चलते कई मोहल्लों की सड़कें खोदी हुई हैं। बारिश के कारण ये सड़कें कीचड़ से भर गई। जबकि, कई जगह क्षतिग्रस्त सड़कों पर आवाजाही मुश्किल हो गई। घंटाघर, प्रिंस चौक, दर्शनलाल चौक, बुद्धा चौक, ऐश्ले हाल चौक समेत तमाम प्रमुख चौराहे तरणताल बन गए। यमुना कालोनी, खुड़बुड़ा, चुक्खूवाला, धर्मपुर, डोभालवाला, बंजारावाला, चमनपुरी, ब्राह्मणवाला, मोरोवाला, कारगी आदि क्षेत्रों में जलभराव हो गया। इसके साथ ही कुछ इलाकों में जलभराव के कारण सड़कें यातायात के लिए बाधित हो गईं। भारी बारिश के कारण शहर की दो दर्जन से अधिक कालोनियों में बिजली भी गुल रही।

ड्रेनेज सिस्टम सुधारने में नाकाम जिम्मेदार

दून में पिछले 20 साल में निर्माण कार्य कई गुना तेजी से हुए। नई-नई कालोनियां विकसित होती रहीं, लेकिन जल निकासी को लेकर कोई योजना नहीं बनी। एमडीडीए की नाक के नीचे बिना पानी की निकासी वाली कालोनियां खड़ी होती रहीं। नगर निगम अपने नाले-खाले नहीं बचा पाया और सरकारों के लिए दून का विकास कोई मुद्दा नहीं रहा। ऐसे में मानसून सीजन आते ही जलमग्न सड़कों और गलियों के बीच ये सवाल तैरने लगते हैं। वर्ष 2008 में बना ड्रेनेज प्लान आज खुद फाइलों में कहीं डूब गया है और अब सिंचाई विभाग नए सिरे से इस पर काम कर रहा है। हालांकि, यह धरातल पर कब तक उतर पाएगा, यह कोई नहीं बता सकता।

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