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यह कैसे उत्तराखंड के सरकारी अस्पताल, 59 फीसदी मरीज बाहर से खरीदकर खाते हैं दवा

कंप्ट्रोलर एंड ऑडिट जनरल ऑफ इंडिया (कैग) ने उत्तराखंड के सरकारी अस्पतालों में किए गए ऑडिट के आधार पर 2021 के संदर्भ में अपनी पहली रिपोर्ट जारी की है। इसमें सरकारी अस्पतालों की खराब हालत फिर से उजागर हुई है। कैग के अनुसार सरकारी अस्पताल पहुंच रहे 59 फीसदी मरीजों को दवाएं नहीं मिल रही हैं। अधिकांश मरीजों को बाहर से दवा खरीदनी पड़ रही है।

70 फीसदी अस्पतालों के ऑपरेशन थियेटरों में जरूरी उपकरण व दवाएं उपलब्ध नहीं है। पहाड़ी इलाकों के केवल गिनती के अस्पतालों में एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन जैसी रेडियोलॉजी सेवाएं उपलब्ध है। मैदानी इलाकों में भी रेडियोलॉजी सेवाओं का स्तर काफी खराब है। अस्पतालों में पैथोलॉजी सेवाओं की हालत संतोषजनक नहीं है।

कैग ने पाया कि आईपीएचएस के पैमाने के अनुसार जिला अस्पतालों में 60 आवश्यक पैथोलॉजी उपकरण होने चाहिए। लेकिन जिन अस्पतालों का सीएजी ने निरीक्षण किया, उनमें पैथोलॉजी उपकरण की कमी 48 से 78 प्रतिशत तक पाई गयी। अस्पतालों में स्त्री रोग विभाग और जनरल मेडिसिन विभाग में मरीजों का दबाव सबसे ज्यादा है। विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी व मरीजों की भारी भीड़ के चलते 75 प्रतिशत मरीजों को डॉक्टर चार मिनट से भी कम वक्त दे पाते हैं।

स्वास्थ्य विभाग के अफसर सरकार की ओर से मिल रहा पूरा बजट भी खर्च नहीं कर पा रहे हैं। कैग रिपोर्ट के अनुसार 2018-19 में सरकार ने 1531 करोड़ रुपये का बजट जारी किया, पर इसमें से केवल 1385 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाया। स्वास्थ्य विभाग बीते पांच सालों में कभी भी जारी हुआ पूरा बजट खर्च नहीं कर पाया है। हालांकि राज्य सरकार की ओर से बजट में वृद्धि का अनुपात भी काफी कम है।

कैग की ऑडिट रिपोर्ट समय-समय पर आती है, पर हमने बीते कुछ सालों में आईपीएचएस मानकों के आधार पर स्वास्थ्य सेवाओं में काफी सुधार किया है। कोविड के बाद तो अस्पतालों की सुविधाओं में काफी इजाफा हुआ है। विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति हुई है, इसलिए आने वाले दिनों में सेवाओं के स्तर पर अधिक तेजी से सुधार आएगा।
डॉ. शैलजा भट्ट, स्वास्थ्य निदेशक कुमाऊं  

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