सरकार ने माना कोयला न मिलने से बिजली प्रोडक्शन घटा:सूरतगढ़ पावर प्लांट की 250-250 मेगावाट की 6 यूनिट्स, कालीसिंध और कवाई में 600-600 मेगावॉट की 2 यूनिट हैं बंद
जयपुर राजस्थान में अभी भी कोयले की डिमांड जितनी सप्लाई नहीं मिल पा रही है। जिस कारण अलग-अलग थर्मल पावर प्लांट्स की 8 बिजली प्रोडक्शन करने वाली यूनिट्स ठप पड़ी हैं,जबकि 6 यूनिट्स 30 फीसदी कम कैपेसिटी पर चलानी पड़ रही हैं। राज्य सरकार के बिजली विभाग ने खुद मान लिया है कि कोयला नहीं मिलने के कारण बिजली प्रोडक्शन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। सूरतगढ़ की 250-250 मेगावाट की 6 इकाइयां, कालीसिंध की 600 मेगावॉट की 1 यूनिट, कवाई में अडानी थर्मल प्लांट की 600 मेगावॉट की एक इकाई अभी भी बंद है। कोटा की 6 यूनिट्स भी 70 फीसदी कैपेसिटी पर ही चल पा रही हैं।
8 यूनिट्स ठप, 6 यूनिट्स 30 फीसदी कम लोड पर चल रहीं
राजस्थान में बिजली संकट अभी भी जारी है। भले ही छबड़ा की 250 मेगावाट और 660 मेगावाट की एक-एक यूनिट, कालीसिंध की 660 मेगावाट की 1 सुपर क्रिटिकल यूनिट से रविवार को बिजली का प्रोडक्शन शुरू कर दिया गया है और सूरतगढ़ में 8 नम्बर की यूनिट फुल लोड 660 मेगावाट और 7 नम्बर की यूनिट 615 मेगावाट के लोड पर चला दी गई है। लेकिन सूरतगढ़ की 250-250 मेगावाट की 6 इकाइयां अभी भी बंद पड़ी हैं। वो कब तक चालू हो सकेंगी, कोई कहने की स्थिति में नहीं है। इसी तरह कालीसिंध की 1 यूनिट भी कोयले की सप्लाई मांग के मुताबिक नहीं होने से बंद करनी पड़ी हैं। केवल एक यूनिट ही कालिसिंध में 29 अगस्त को शुरू हो सकी है। छबड़ा परियोजना की 250 मेगावाट की पहली इकाई और 660 मेगावाट की पांचवी इकाई से बिजली का प्रोडक्शन शुरू हुआ है। लेकिन कितने दिन ये जारी रह पाएगा कहना मुश्किल है।
कोल इंडिया रोज़ाना 11.5 रैक की बजाय 3 रैक कोयला ही दे रहा
उत्पादन निगम की 3240 मेगावॉट की इकाइयों के लिए कोयले की आपूर्ति कोल इंडिया के एनसीएल और एसईसीएल से होती है। इसके लिए सीआईएल से 170 लाख मीट्रिक टन सालाना कोयले की सप्लाई का कांट्रैक्ट है, जो कि लगभग 11.5 कोयले की रैक रोज़ाना का है। जबकि मौजूदा समय में केवल 3 रैक रोज़ाना ही वहां से कोयले की सप्लाई मिल पा रही है।
कोल माइनिंग इलाकों में बारिश भी बनी है मुसीबत
हालांकि उत्पादन निगम और बिजली विभाग के आला अधिकारियों से हुई बातचीत में पीकेसीएल ने अगले दो-तीन दिन में 14 रैक्स भिजवाने की बात कही है,लेकिन इलाके में माइनिंग,वाशिंग और लोडिंग कितनी तेज़ी से हो पाएगी इस पर यह निर्भर करेगा। क्योंकि इलाके में काफी बरसात हो रही है। इस कारण कोयले की ढुलाई में दिक्कत हो रही है। पूरी डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं हो रही। छत्तीसगढ़ में कोयला ब्लॉक्स इलाके में लगातार बरसात के कारण संकट के हालात बने हुए हैं।
देशभर में बढ़ी बिजली की मांग,राजस्थान में बिजली की डिमांड रही ऐतिहासिक
राजस्थान में सामान्य तौर पर अगस्त महीने में औसत 2000 लाख यूनिट रोज़ाना बिजली की मांग रहती है। जो इस साल बढ़कर 3100 लाख यूनिट रोज़ाना तक पहुंच गई है। यानी 1100 लाख यूनिट एक्स्ट्रा डिमांड बढ़ गई है। 19 अगस्त को तो राजस्थान में सबसे ज्यादा डिमांड 14690 मेगावॉट रिकॉर्ड की गई है। यह राजस्थान के इतिहास में किसी भी साल में सबसे ज्यादा बताई जा रही है। पूरे देश में बिजली प्रोडक्शन की कमी और उत्तर भारत में कमज़ोर मॉनसून के कारण बिजली की डिमांड में भी बढ़ोतरी रिकॉर्ड हुई है। बिजली एक्सचेंज में बिजली की रेट्स भी काफी ज्यादा बढ़ गई हैं। सामान्य दिनों में एक्सचेंज में बिजली की सबसे ज्यादा रेट 6 से 7 रूपये एक यूनिट रहती है। जो कि मौजूदा समय में में बढ़कर 20 रूपये एक यूनिट तक पहुँच गयी है। औसत रेट 3-4 रूपये से बढ़कर 10 रूपये तक पहँच गयी है।
मंत्री डॉ बीडी कल्ला ने पिछली सरकार पर फोड़ा मिस मैनेजमेंट का ठीकरा
बिजली विभाग के मंत्री डॉ बीडी कल्ला ने तो प्रदेश में मौजूदा बिजली की कमी को पिछली सरकार के कुप्रबंधन का परिणाम बता दिया है। साथ ही कोटा संभाग और सूरतगढ़ की बिजली प्रोडक्शन इकाईयों को कोयला सप्लाई के लिए कोल इंडिया पर निर्भर बताया है। कोयले की पूरी सप्लाई के लिए केन्द्र सरकार के लेवल पर फ़ॉलोअप लेने की भी बात उन्होंने कही है। मंत्री के आरोप हैं कि छबड़ा और सूरतगढ़ सुपरक्रिटीकल में 660-660 मेगावाट की 2-2 महत्वपूर्ण इकाईयों की समय पर कमीशनिंग पर पिछली सरकार ने ध्यान नहीं दिया। इसकी वजह से इन इकाईयों के काम में देरी हुई । उन्होंने बताया कि छबड़ा और सूरतगढ़ की दो इकाईयों से 2016 में बिजली का प्रोडक्शन शुरू होना था, जो धीमी रफ्तार के कारण समय पर शुरू नहीं हो सका। केवल छबड़ा में 660 मेगावॉट की एक इकाई का काम ही उस समय 2018 में जाकर शुरू हो सका। उन्होंने कहा कि उत्पादन निगम के पिछली सरकार के समय के 20 हजार करोड़ रुपये के बिल भुगतान बकाया थे। जिसके कारण उत्पादन निगम को उस समय पिछली सरकार के कार्यकाल में लोन लेना पड़ा था। उस लोन का ब्याज अब उत्पादन निगम को काफी भारी पड़ रहा है। इसके साथ ही पिछली सरकार बिजली ट्रांसमिशन निगमों पर 53000 करोड़ का उधार का भार और उत्पादन निगम पर 45000 करोड़ के लोन का बोझ छोड़कर गयी थी। इस तरह पिछली सरकार ने बिजली की कम्पनियों पर 1 लाख 20 हज़ार करोड़ का भार डाल कर फाइनेंशियल मिस मैनेजमेंट किया है।