उज्जैन में डेढ़ साल बाद भक्तों को मिले महाकाल की भस्मारती के दर्शन
उज्जैन। डेढ साल बाद भक्त फिर से महाकाल की भस्मारती में के दर्शन को पहुंचे। शनिवार सुबह बड़ी संख्या में भक्त यहां पहुंचे थे। कोरोना के कारण मार्च 2020 से इस पर रोक लगी हुई थी। बीते दिनों मंदिर प्रबंध समिति ने बैठक कर रोक हटाने और दर्शनार्थियों को अनुमति देने का निर्णय लिया था। पहले दिन के लिए शुक्रवार दोपहर में ही बुकिंग फुल हो गई थी। महाकाल मंदिर के पं. महेश पुजारी बताते हैं कि शिव आदि और अनंत हैं…वे निराकार भी हैं और साकार भी…वे भस्म भी रमाते हैं और सोने चांदी के आभूषण भी धारण करते हैं। लौकिक जगत में भक्तों को सृजन से संहार तक का साक्षात्कार कराने के लिए शिव का यह कल्याणकारी रूप केवल ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में भस्मारती के दौरान ही दिखाई देता है।
दो घंटे की इस आरती में भगवान को जगाने से लेकर भस्म रमाने तक की अनेक विधि गोपनीय है। मान्यता है भगवान को जब भस्म रमाई जाती है तो वे दिगंबर स्वरूप में होते हैं। महिलाओं के लिए भगवान के इस रूप का दर्शन निषेध माना गया है। इसलिए जब भगवान को भस्म रमाई जाती है तो पुजारी महिलाओं को घूंघट डालने को कहते हैं। भस्म रमाने की विधि पूर्ण होने के बाद महिलाएं अपना घूंघट हटा लेती हैं।
एक दिन पहले मंदिर में तैयार होती है भस्मी
भगवान महाकाल को कभी भी चिता भस्म अर्पित नहीं की गई है। चिता भस्म अर्पित करने की किंवदंतियां निराधार हैं। महानिर्वाणी अखाड़े के साधु संत प्रतिदिन ओंकारेश्वर मंदिर के पृष्ठ भाग में स्थित भस्मी कक्ष में औषधीयुक्त गाय के गोबर से बने कंडों को जलाकर भस्म तैयार करते हैं। भस्मी को कपड़े में रखकर भगवान को अर्पित किया जाता है।