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मध्य प्रदेश में आदिवासी समाज के वोट पर राजनीतिक नजर, दौड़ में भाजपा आगे निकली, कांग्रेस पिछड़ी

मध्य प्रदेश में करीब 22 फीसदी आबादी वाले आदिवासी के पास इन दिनों सत्ता की चाबी पहुंच गई है। यह प्रदेश के प्रमुख राजनीति दल भाजपा और कांग्रेस की समझ में आ गया है लेकिन आज भी आदिवासी अपने भोले-भाले चरित्र की वजह से दुविधा में नजर आ रहा है। आदिवासियों के गौरव और अपमान को दोनों ही दलों के अपने-अपने तर्क हैं। बहरहाल जो भी है, इस समय आदिवासियों के जननायकों को नई पहचान देने के नाम पर भाजपा कांग्रेस से आगे निकलती दिख रही है और इसका सीधा असर आने वाले पंचायत चुनावों के साथ विधानसभा चुनाव 2023 व लोकसभा चुनाव 2024 में दिखाई देगा।

मध्य प्रदेश में साढ़े सात करोड़ की आबादी में से करीब 22 फीसदी जनसंख्या आदिवासियों की है। यही वजह है कि प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 47 आदिवासियों की हैं लेकिन करीब 25 सीटें और हैं जहां आदिवासी वोट हार-जीत पर असर डालते हैं। वहीं, प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से छह सीटें अनुसूचित जनजाति की है जिनमें शहडोल, मंडला, बैतूल, खरगोन, धार और रतलाम-झाबुआ हैं। लोकसभा चुनाव 2019 में तो कांग्रेस को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था लेकिन विधानसभा चुनाव 2018 में भाजपा को अनुसूचित जनजाति की सीटों पर मिले झटके की वजह से सत्ता से बेदखल होना पड़ा था।

भाजपा की तेज चाल
2018 में सत्ता से दूर हो जाने में सबसे अहम भूमिका अनुसूचित जनजाति की 30 सीटों पर भाजपा को हार ने निभाई थी। इसीलिए अब भाजपा तेजी से इस पर काम कर रही है क्योंकि अब केवल दो साल का समय बचा है। कोरोना महामारी की वजह से उसका करीब डेढ़ साल का समय बेकार चला गया था और अब दो साल में इस वर्ग के नजदीक पहुंचने का टारगेट है। इसके लिए दो महीने में पार्टी ने काफी तेजी से कार्यक्रम करके और इस वर्ग से जुड़े फैसले लेकर अपने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाए हैं।

राजा शंकरशाह-रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस से शुरुआत
भाजपा ने आदिवासियों के जननायकों के नाम पर आयोजनों की शुरुआत जबलपुर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस से की। इसमें ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पेसा एक्ट को लागू करने का ऐलान किया। इसके बाद ही झाबुआ में आदिवासी सम्मेलन किया था। फिर बिरसा मुंडा की जयंती पर जनजातीय दिवस मनाकर भोपाल की गौंड रानी कमलापति के नाम रेलवे स्टेशन का नाम कर दिया। आदिवासियों के घर राशन पहुंचाने की योजना को शुरू किया।

भाजपा ने जनजातीय नायकों पहचान देना शुरू की

वहीं, जनजातीय जननायकों के नाम पर इंदौर-पातालपानी के स्थानों की पहचान कराने की योजनाओं को बनाया। मध्य प्रदेश के एक और आदिवासी जननायक टंट्या मामा के बलिदान दिवस का इंदौर में शनिवार को भव्य आयोजन कर इस दिशा में बड़ा कदम बढ़ाया है। टंट्या मामला के  सम्मान में गौरव यात्राएं निकालकर पातालपानी में कार्यक्रम का आयोजन किया था जो अब इंदौर के नेहरू स्टेडियम में हो रहा है। मुुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने आदिवासियों को कांग्रेस द्वारा केवल वोट बैंक समझने के आरोप लगाए हैं। भाजपा नेताओं ने कहा कि कांग्रेस ने आदिवासियों के नायकों रानी कमलापति हो या टंट्या मामा या राजा शंकरशाह व रघुनाथ किसी को सम्मान नहीं दिया। उनके इतिहास को पढ़ाया नहीं। भाजपा इनके सही इतिहास को लोगों को बताएगी।

कांग्रेस की चाल धीमी
वहीं, आदिवासियों के सहारे अब तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस उन तक अपनी बात पहुंचाने के कार्यक्रमों को करने में बेहद धीमी रफ्तार से चल रही है। दो महीने पहले छह सितंबर को उसने आदिवासी अधिकार यात्रा की शुरुआत की थी। बड़वानिी में यह यात्रा शुरू हुई थी जिसका दूसरा चरण मंडला-डिंडौरी में जनवरी 2022 में होगा। तीसरा चरण अनुपपुर-शहडोल में होली के बाद और चौथा व अंतिम चरम जून 2022 में सिंगरौली में होने की संभावना है।

कांग्रेस का आरोप अपने ही आदिवासी नेताओं को नहीं दिया सम्मान

मप्र कांग्रेस के अनुसूचित जनजाति विभाग के अध्यक्ष अजय शाह का कहना है कि कांग्रेस भाजपा की तरह आदिवासियों का राजनीतिक इस्तेमाल नहीं करना चाहती। भाजपा ने अपने आदिवासी नेताओं का अपमान ही किया है क्योंकि आठ बार से सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते को आज तक कैबिनेट मंत्री तक का दर्जा नहीं दिया और आठ बार के विधायक विजय शाह को दो बार मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाया है। यही नहीं अनुसूचित जनजाति विभाग का मंत्री भी एसटी विधायक को नहीं बनाया है। फिर पार्टी अध्यक्ष तो दूर की बात है।

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