तो टिकट बटवारे में निर्णायक भूमिका का मिला भरोसा
देहरादून। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस की प्रदेश चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत की इंटरनेट मीडिया में की गई पोस्ट से उत्तराखंड कांग्रेस में मचा घमासान हाईकमान के हस्तक्षेप से भले ही थम गया, लेकिन सच यह है कि रिश्तों में पड़ी गांठ अब शायद ही सुलझ पाए। कांग्रेस में लगभग 48 घंटे चले इस घटनाक्रम के बाद हरीश रावत मजबूत होकर जरूर उभरे हैं और अब यह तय है कि टिकट बटवारे में उनकी निर्णायक भूमिका रहेगी
हरीश रावत राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी हैं। उन्होंने इंटरनेट मीडिया के माध्यम से जो स्टैंड लिया, काफी सोच-समझ कर लिया। रावत जानते हैं कि उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं, लेकिन इस चुनाव में मौका हाथ से निकल गया तो फिर भविष्य की कोई गारंटी नहीं। इसीलिए वह शुरुआत से ही पार्टी से स्वयं को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की मांग करते आ रहे हैं। रावत को भरोसा था कि पार्टी उनकी वरिष्ठता को देखते हुए चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से पहले उनकी बात को मान लेगी, लेकिन ऐसा होता लगा नहीं। इसके बाद उन्होंने केंद्रीय नेताओं को निशाने पर लेने का कदम उठाया
शुक्रवार को दिल्ली में राहुल गांधी के साथ बैठक के बाद हरीश रावत ने कहा कि चुनाव में पार्टी का नेतृत्व वह करेंगे और मुख्यमंत्री कौन बनेगा, यह चुनाव में बहुमत मिलने के बाद हाईकमान तय करेगा। देखा जाए तो इसमें कुछ भी नया नहीं। रावत प्रदेश चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष होने के नाते पहले से ही कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे हैं। हाईकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की बात भी नहीं कही। इसके बावजूद रावत आश्वस्त दिख रहे हैं तो उसका कारण यही है कि चुनाव संचालन से संबंधित निर्णयों के लिए हाईकमान ने उन्हें फ्रीहैंड दे दिया है, जिसे लेकर अब तक वह स्वयं को घिरा व बंधा हुआ महसूस कर रहे थे
इसमें सबसे महत्वपूर्ण है टिकट बटवारा। रावत की इसमें अब सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रहने वाली है। रावत चाहते भी यही थे कि पार्टी अगर उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा न बनाए तो कम से कम प्रत्याशी चयन उनके मन मुताबिक हो। यह इसलिए, क्योंकि चुनाव में बहुमत हासिल करने के बाद मुख्यमंत्री पद पर उसी नेता का दावा सबसे पुख्ता होगा, जिसके साथ अधिक विधायक होंगे। टिकट बटवारे में निर्णायक भूमिका सुनिश्चित होने के बाद बाकी का काम रावत के लिए कोई बहुत अधिक मुश्किल नहीं रहेगा। इसके अलावा एक बात और रावत के पक्ष में जाती है। वह यह कि उनके राजनीतिक कद को चुनौती देने वाला फिलहाल प्रदेश कांग्रेस में कोई नेता नहीं है।
विधानसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले कांग्रेस में हुई इस बड़ी हलचल से पार्टी के चुनावी रथ को झटका लगना तय माना जा रहा है। कांग्रेस का चुनाव अभियान इस बार व्यवस्थित रूप से आगे बढ़ रहा था, लेकिन इस गतिरोध ने उसे थोड़ा बाधित तो किया ही। प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव और नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह के साथ उनके रिश्तों की तल्खी भी इससे सतह पर आ गई। साथ ही पार्टी में निचले स्तर तक गुटबाजी भी साफ दिखाई दी। ऐसे में अब कांग्रेस किस तरह आगे बढ़ती है, पर पर नजर रहेगी। हालांकि हरीश रावत ने इस घटनाक्रम से कांग्रेस को किसी तरह का नुकसान पहुंचने की संभावना से इन्कार किया। बातचीत में उन्होंने कहा कि राजनीति में अपनी बात रखना सबका अधिकार है। इस घटनाक्रम से किसी तरह की हानि नहीं होगी, बल्कि हम इसे फायदे में बदल देंगे।