ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना के निर्माण की प्रक्रिया ने पकड़ी गति, चार दिन में तैयार हो रही एक किलोमीटर सुरंग
ऋषिकेश: भारतीय रेलवे की स्वप्निल ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना पर सुरंग निर्माण की प्रक्रिया ने खासी गति पकड़ ली है। जहां पहले एक माह में एक किमी सुरंग बन रही थी, वहीं अब इसमें महज चार दिन लग रहे हैं। इस पूरी परियोजना में बनने वाली 17 सुरंगों का निर्माण नार्वेजियन टनलिंग मेथर्ड (एनटीएम) और न्यू आस्ट्रियन टनलिंग मेथर्ड (एनएटीएम) से किया जा रहा है।
16216 करोड़ की लागत से तैयार हो रही 126 किमी लंबी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना पर सबसे अधिक 17 सुरंग बननी हैं। यानी 126 में से 105 किमी रेल लाइन सुरंगों के भीतर होगी। इन 17 मुख्य सुरंगों में से 16 के निर्माण में एनटीएम व एनएटीएम का इस्तेमाल हो रहा है। जबकि, एक टनल का निर्माण टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) के जरिये किया जाएगा
रेल विकास निगम के ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना के वरिष्ठ परियोजना प्रबंधक ओमप्रकाश मालगुड़ी ने बताया कि इन दोनों तकनीकी में से एनटीएम सुरंग निर्माण की एक अत्याधुनिक तकनीकी है। इसकी मदद से जहां निर्माण लागत कम आती है, वहीं यह तकनीकी समय की बचत व गुणवत्ता की दृष्टि से भी बेहतर है।
बताया कि एनटीएम को और बेहतर ढंग से समझने के लिए परियोजना से जुड़े इंजीनियर व कर्मियों को कुछ समय पूर्व नार्वे के नार्वेजियन जिओ टेक्निकल इंस्टीट्यूट में प्रशिक्षण के लिए भेजा गया था। इसके बाद अब इस तकनीकी का और बेहतर इस्तेमाल योजना निर्माण में हो रहा है। मालगुड़ी ने बताया कि शुरुआती चरण में जहां टनल निर्माण का कार्य प्रति माह एक किमी हो रहा था, वहीं अब विभिन्न स्थानों पर काम शुरू होने और तकनीकी की मदद से एक किमी टनल का निर्माण महज चार दिन में संभव हो गया है।
एनटीएम व एनएटीएम तकनीकी में अंतर
सुरंग निर्माण में ज्यादातर नार्वेजियन टनलिंग मेथर्ड व न्यू आस्ट्रियन टनलिंग मेथर्ड का ही इस्तेमाल किया जाता है। एनटीएम में किसी सुरंग के ऊपरी आधे भाग की एक निश्चित दूरी तक मशीनों के जरिये खोदाई कर उतने हिस्से में सपोर्टिंग कार्य पूरा किया जाता है। इसके बाद शेष आधे हिस्से की खोदाई होती है। इस तकनीकी में कम समय व कम लागत आती है। वहीं, एनएटीएम तकनीकी में पूरी सुरंग की गोलाई को एक साथ खोदा जाता है, जो एनटीएम की अपेक्षा अधिक खर्चीली है और इसमें समय भी अधिक लगता है।
परियोजना पर बन चुकी 31 किमी सुरंग
परियोजना पर अब तक कुल 31 किमी सुरंग का निर्माण हो चुका है। मुख्य परियोजना प्रबंधक हिमांशु बडोनी ने बताया कि परियोजना पर कुल 17 मुख्य सुरंग बननी हैं। इसके अलावा लंबी सुरंग में पहुंच बढ़ाने के लिए कई जगह एडिट टनल भी बनाई जा रही हैं।
अब तक मुख्य और एडिट टनल में कुल 31 किमी का निर्माण हो चुका है। यह सभी निर्माण एनटीएम व एनएटीएम तकनीकी से हो रहे हैं। जबकि, परियोजना की सबसे लंबी डबल ट्यूब रेल टनल (14.08 किमी) को तैयार करने के लिए टनल बोरिंग मशीन की मदद ली जाएगी। यह टनल देवप्रयाग (सौड़) से जनासू तक बनेगी।
ब्लैस्टलेस ट्रैक को जल्द होंगे टेंडर
वरिष्ठ परियोजना प्रबंधक मालगुडी ने बताया कि ऋषिकेश-कर्णप्रयाग के मध्य 105 किमी रेल ट्रैक सुरंग के भीतर गुजरेगा, इसलिए यह ब्लैस्टलेस ट्रैक होगा। रेल विकास निगम की ओर से ब्लैस्टलेस ट्रैक के लिए जल्द टेंडर प्रक्रिया शुरू की जाएगी। ब्लैस्टलेस ट्रैक पारंपरिक रेल ट्रैक से कुछ भिन्न होता है। इसमें कंकरीट की स्लैब डालकर स्लीपर बिछाए जाते हैं। कंपन रोकने को डबल रबर पैड लगाए जाते हैं। इससे शोर भी कम होता है। बताया कि इस तरह के ट्रैक में अधिक मरम्मत की जरूरत नहीं पड़ती।
नार्वे के राजदूत ने जानी रेल परियोजना की प्रगति
भारत में नार्वे के राजदूत हास जैकब फ्रेडनलैंड ने शनिवार को ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल परियोजना का निरीक्षण किया। इस परियोजना पर नार्वे की एनटीएम तकनीकी से रेल सुरंग बन रही हैं। फ्रेडनलैंड सुबह दस बजे यहां रेल विकास निगम के परियोजना मुख्यालय पहुंचे। इस दौरान निगम के परियोजना निदेशक हिमांशु बडोनी व सहायक परियोजना प्रबंधक सुमित जैन ने परियोजना की प्रगति से संबंधित प्रेजेंटेशन दिया।
राजदूत फ्रेडनलैंड ने परियोजना पर बन रही एडिट टनल-1 व एडिट टनल- 4 का स्थलीय निरीक्षण भी किया। इस दौरान उनके साथ नार्वेजियन जियोटेक्निकल इंस्टीट्यूट के विज्ञानी राजेंद्र भसीन भी थे। उन्होंने दैनिक जागरण को बताया कि परियोजना में एनटीएम तकनीकी का बेहतर ढंग से उपयोग हो रहा है। इस अवसर पर वरिष्ठ परियोजना प्रबंधक ओमप्रकाश मालगुड़ी, सहायक परियोजना प्रबंधक विजय बहुगुणा, चीफ जियोलाजिस्ट विजय डंगवाल, नार्वे दूतावास के सलाहकार विवेक कुमार, काउंसलर मारित मेरी स्टैंड आदि मौजूद रहे