मिशन मून की बड़ी समस्या!: एस्ट्रोनॉट्स के लिए चांद पर रातें बिताना होगा बड़ी चुनौती, आ सकती हैं ये बड़ी समस्याएं
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। चन्द्रमा पर मानव के जीवनयापन के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक नए-नए शोध करते रहते हैं। बात जब भी होती है चन्द्रमा पर रात गुजराने की तो स्पेस इंजीनियरों के पसीने छूटने लगते हैं। हम जितने आराम से पृथ्वी पर सुकूनभरी रात गुजराते हैं, ठीक इसके विपरीत है चांद पर रातें बिताना। चांद पर रातें बिताना इसलिए मुश्किल है क्योंकि पृथ्वी के दिन के हिसाब से, चांद की सतह पर ज्यादातर जगहों पर, लगातार 14 दिन तक दिन और 14 दिन तक रात रहती है। वहीं रात में चांद का तापमान दिन के मुकाबले में काफी कम रहता है, जिसकी वजह से ठंड भी बहुत अधिक बढ़ जाती है।
रिर्पोट्स की माने तो चांद पर दिन के समय तापमान 120 डिग्री सेल्सियस और रात के समय माइनस 180 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। वैज्ञानिकों की ओर से भी यह भी दावा किया गया है कि जिस भाग में चांद पर स्थाई रुप से छाया रहती है वे और भी ठंडा हो सकता है। जिसके चलते रात में चांद का तापमान 240 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है।
वैज्ञानिकों के लिए चांद के तापमान का यह उतार-चढ़ाव उनके मिशन के लिए हमेशा से चुनौती भरा रहा है। वास्तव में यह सत्यापित है की जो PSRs हैं जिसमें क्रेटर हैं, वहां तक सू्र्य की रोशनी पहुंच नहीं पाती है जिसकी वजह से वहां पानी की बर्फ जम जाती है। इस जमे हुए पानी से ऑक्सीजन, पानी समेत रॉकेट ईंधन में प्रोसेस किया जा सकता है। चांद पर सफलापूर्वक संचालन करने के लिए मून एक्सप्लोरेशन प्लानर भरपूर प्रयास कर रहे हैं। वैज्ञानिकों के लिए चांद के दक्षिणी ध्रुव सबसे चुनौतीपूर्ण रहने वाली है क्योंकि यह पूरा इलाका PSRs से भरी हुई है जहां पानी की बर्फ संचय करने के लिए एक सम्पूर्ण जगह बनी हुई है। इस जगह पर तेज ठंड होने की वजह से यह आसान नहीं है।
संभव नहीं रात बिताना
चांद पर रातें बिताना संभव है की नहीं, इस पूरे मसले पर द एयरोस्पेस कॉरपोरेशन के लूनर साइंटिस्ट डीन एपलर का कहना है कि चांद पर रातें बिताना वहीं तक समस्या नहीं है बल्कि रात गुजराने पर दो समस्याओं से दो-चार होना पड़ सकता है। रात को जीवित रहना ही केवल चुनौती नहीं है, इसके अतिरिक्त रात को चन्द्रमा से जुड़े मिशन पर काम करना भी चुनौती से भरा हुआ है। रात के समय चांद के किसी ध्रुवों पर जाएं अंधेरा ही मिलेगा।
एपलर आगे कहते है कि ‘मैं चांद की रात को लेकर सकरात्मक सोच रखता हूं। रात में चांद पर फिल्ड जियोलॉजी नहीं की जा सकती लेकिन रात के समय शायद जीवन विज्ञान, सैंपल एनालिसिस और कलिंग, इंजीनियरिंग या रखरखाव जैसे काम को किया जा सकता है। एपलर का यह भी मानना है की पहले के अपेक्षा में अभी बेहतर काम किया जा सकता है’।
आज की तारीख में सबसे बड़ा मुद्दा चांद पर ध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर रात के समय जिंदा रहना है। सेंट्रल फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी में फ्लोरिडा स्पेस इंस्टीट्यूट के ‘फिलिप मेट्ज़गर’ नाम के वैज्ञानिक का कहना है कि चांद पर बेहद ठंड होने से कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं होनी चाहिए। कहते हैं कि थोड़ी सी ऊर्जा और अच्छे इन्सुलेशन से वाहन को गर्म रखा जा सकता है। न्यू होराइजन्स स्पेसक्राफ्ट ने अपने इलेक्ट्ऱॉनिक सामानों को तब भी रुम टेम्प्रेचर पर रखा था। जब वे प्लूटो में सूर्य से बहुत दूर थे।
वैज्ञानिक एपलर कहते हैं कि जूते, दस्ताने और बैकपैक जैसे पोर्टेबल लाइफ सपोर्ट सिस्टम सहित मूनवॉकिंग सूट सिस्टम के संबंध में थर्मल डिटाइन के मुद्दे भी गंभीर होंगे। उदाहरण देते हुए एपलर ने बताया कि मान लिजिए की आप बर्फ में खड़े है, लेकिन आपके पैर और धड़ पर धूप आ रही है। ऐसे में आपको सुनिश्चित करना होगा की जूते और कपड़े का मैटीरियल जमकर टूट न जाए। यह भी देखना होगा की ज्यादा तापमान से क्रू को किसी प्रकार की दिक्कत का सामना न करना पड़े। यह सभी वास्तव भी समस्या है। एपलर ने सब कुछ कहने के बाद अंत में कहा कि आर्टेमिस टेक्नोलॉजिस्ट इस पूरे मसले पर काम कर रही है कि रात के समय चांद पर कैसे जीवनयापन किया सकता है।