Wed. May 21st, 2025

उत्तराखंड में डेरी से दुग्ध उत्पादकों का मोहभंग, रोजाना 15 हजार लीटर घटा उत्पादन, खुले बाजार में मुनाफा ज्यादा

हल्द्वानी :राज्य सरकार दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के भले ही लाख दावे कर ले, पर उचित दाम नहीं मिलने से दुग्ध उत्पादकों का सहकारी डेरी से लगातार मोहभंग होता जा रहा है। पशुपालक खुले बाजार में दूध बेचना अधिक फायदेमंद मान रहे हैं। जिसका असर डेरी फेडरेशन के उपार्जन में भी देखने को मिल रहा है, जिसमें पिछले वर्ष की तुलना में 7.70 प्रतिशत गिरावट दर्ज हुई है

उत्तराखंड डेरी फेडरेशन (Uttarakhand Dairy Federation) यानी आंचल डेरी (Aanchal Milk) के लिए दूध उत्पादन सरकारी संघ की मदद से दूध की खरीद की जाती है, जिसके करीब ढाई हजार समितियों से 1.64 लाख उत्पादक जुड़े हुए हैं। जब ये दुग्ध उत्पादक समितियों पर दूध को लेकर पहुंचते हैं, तो उन्हें गुणवत्ता के हिसाब से कीमत देने के लिए मशीन से जांच की जाती है यानी दूध की गुणवत्ता के हिसाब से उसका मूल्य तय किया जाता है। दुग्ध उत्पादक समितियों में जो दूध 39 रुपये प्रति लीटर की दर से बेचते हैं, खुले बाजार में यही दूध वह 50 से 55 रुपये प्रति लीटर की दर से बेच लेते हैं।

उदाहरण के तौर पर 6.5 फैट, 8.5 साॅलिड नाॅट फैट पर करीब 39 रुपये दिए जा रहे हैं। परंतु जब यही दूध बाजार में उपभोक्ताओं के पास बिकने के लिए पहुंचता है तो इसकी कीमत 54 रुपये प्रति लीटर के करीब पहुंच जाती है। दूसरी ओर, दुग्ध उत्पादक भूसा और दाना महंगा होने के कारण लागत तक नहीं निकाल पाते हैं। इसलिए या तो वे खुले बाजार में दूध बेच रहे या डेरी व्यवसाय का पेशा छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं

दुग्ध उत्पादन को लेकर डेरी फेडरेशन के आंकड़ों की बात करें तो पिछले वित्तीय वर्ष में अप्रैल 2021 से अप्रैल 2022 तक प्रदेश में रोजाना 236230 लीटर प्रतिदिन के हिसाब से दूध का उपार्जन हो रहा था। जबकि वित्तीय वर्ष में 2022-23 यह आंकड़ा गिरावट के साथ 185610 पर पहुंच गया है।

प्रगतिशील काश्तकार व नैनीताल दुग्ध संघ के पूर्व संचालक संचालक नरेंद्र सिंह मेहरा बताते हैं कि दुग्ध उत्पादकों से 6.5 फैट के हिसाब से दूध खरीदा जाता है, उपभोक्ताओं तक पहुंचता है तो पैकेट पर 4.5 फैट लिखा हुआ मिलता है। दुग्ध उत्पादन संघ को दूध बेचने वाले काश्तकार चारा व भूसा महंगा होने से लागत नहीं निकाल पा रहे हैं। जबकि खुले बाजार में दूध बेचने वाले लोग पानी मिलाकर मुनाफा कमा रहे हैं। इसलिए ऐसी नीति बनाई जानी चाहिए, जिसमें उत्पादक दूध खर्च के हिसाब से मूल्य निर्धारण हो

प्रदेश में दुग्ध उत्पादन

माह – उत्पादन

अप्रैल – 210459

मई – 184173

जून – 188430

जुलाई – 190238

अगस्त – 182355

सितंबर – 178232

अक्टूबर – 166037

नोट : आंकड़े प्रति लीटर में दिए गए हैं।

दुग्ध उत्पादक बोले

दुग्ध उत्पादन करना फायदे का व्यवसाय नहीं रह गया है। भूसा के दाम 1200 रुपये तक पहुंच गए हैं, पशु दाना महंगा हो गया है। एक लीटर दूध के उत्पादन में 25 रुपये तक का खर्चा आता है और दुग्ध उत्पादक संघ से भी यही कीमत मिलती है, जबकि घरों तक पहुंचाने वाले लोग 60 रुपये प्रति लीटर तक दूध बेच रहे हैं।

– गणेश बजेठा, दुग्ध उत्पादक चोरगलिया

दुग्ध उत्पादक संघ हमारे दूध का मुश्किल से 30 रुपये प्रति लीटर तक देता है। कभीकभार यह दाम बढ़कर 37 रुपये पहुंच जाता है। मगर बाजार से यही दूध दोगुनी कीमत पर मिलता है। दूध का उचित दाम नहीं मिलने से कष्ट होता है, क्योंकि दूध ही परिवार की आमदनी का जरिया है। मेहनत के हिसाब से भुगतान होना चाहिए।

– तारादत्त सती, दुग्ध उत्पादक खेमपुर गैबुवा

डेर फेडरेशन के निदेशक की भी सुनें

उपार्जन घटा है। यह चिंता की बात है। दुग्ध उत्पादन फिर से कैसे बढ़ाया जाए, इस पर कार्य किया जा रहा है। उत्पादन घटने के कारणों का पता लगाकर दुग्ध उत्पादकों की समस्या को दूर करने का प्रयास किया जाएगा।

– संजय खेतवाल, निदेशक उत्तराखंड डेरी फेडरेशन

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