Sun. Nov 24th, 2024

शहर से गांव लौटकर कृषि-बागवानी को बनाया आजीविका का साधन

पहाड़ के अधिकतर युवा खेती को नुकसान का सौदा मानकर शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं लेकिन सकलाना पट्टी के राकेश ने शहर से गांव लौटकर कृषि-बागवानी को अपनी आजीविका का साधन बनाया है। राकेश नकदी फसल के साथ मधुमक्खी और मुर्गी पालन भी कर रहे हैं जिससे वे एक साल में तीन लाख से अधिक की कमाई कर रहे हैं।

जौनपुर ब्लाक में सकलाना पट्टी के ग्राम मझगांव निवासी राकेश कंडारी भी अन्य युवाओं की तरह होटल की नौकरी कर रहे थे लेकिन कोरोना काल में उन्हें गांव लौटना पड़ा। घर में कुछ दिन खाली बैठने के बाद खेतीबाड़ी में हाथ आजमाने का निर्णय लिया। शुरूआती दिनों में अपने ही खेतों में मटर, आलू और पत्तागोभी का उत्पादन किया तो सब्जी हाथों हाथ बिकने से अच्छी आय हुई। उसके बाद राकेश ने शहर जाने के बजाए अपने गांव में ही कृषि-बागवानी करने का मन बनाया। उन्होंने गांव के लोगों से करीब 70-80 नाली जमीन किराये पर लेकर मटर, आलू, बींस, करेला, खीरा, राई-पालक, मूली और अदरक की खेती शुरू की। खेती से वे समय-समय पर लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं और अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं।

नकदी फसल उत्पादन के दौरान राकेश ने रानीचौरी वानिकी महाविद्यालय से संपर्क कर मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग ली। उसके बाद गांव में ही मधुमक्खी पालन के लिए अब तक 30 बॉक्स लगा चुके हैं। वे मुर्गी पालन के साथ ही माल्टा और बुरांश का जूस भी निकालते हैं। राकेश कहते हैं कि शहद उत्पादन सालभर में करीब ढाई क्विंटल तक पहुंच गया है लेकिन अभी मार्केट नहीं मिलने से कई बार शहद पांच सौ रुपये किलो से भी कम दाम पर बेचना पड़ रहा है। सब्जी और शहद बेचकर वह सालभर में करीब तीन लाख रुपये तक कमा लेते हैं। उन्होंने बताया कि जंगली जानवर सुअर, बंदर और लंगूर काफी नुकसान कर रहे हैं।
मंझगांव के राकेश कृषी-बागवानी में अच्छा कार्य कर रहे हैं। वे समय-समय पर सलाह भी लेते रहते हैं। युवाओं को उनसे प्रेरणा लेकर कृषि-बागवानी में रोजगार के अवसर तलाशने चाहिए। – डा. आलोक येवले, प्रभारी अधिकारी, कृषि विज्ञान केंद्र वानिकी महाविद्यालय

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed