वैज्ञानिक एजेंसियां आंकड़े जुटाने के बाद अब हाथ-पैर मार रही सरकार l डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
जोशीमठ में भूधंसाव की स्थिति को लेकर भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआइ) समेत विभिन्न वैज्ञानिक एजेंसियां आंकड़े जुटा चुकी हैं। हालांकि, इन आंकड़ों को प्लाट (दर्ज) करने के लिए लार्ज स्केल कंटूर मैप की जरूरत होती है। यह ऐसा मैप होता है, जिसमें आकृतियों को उनकी स्पष्ट ऊंचाई के साथ दर्शाया जाता है।वैज्ञानिक संस्थाओं की ओर से ऐसे मैप की मांग किए जाने के बाद राज्य सरकार की मशीनरी हरकत में आई। भारतीय सर्वेक्षण विभाग के नक्शे टटोले गए तो पता चला कि पूर्व के मैप बहुत छोटे स्केल जैसे 1:50000 पर बने हैं। ऐसे मैप को विज्ञानियों ने खारिज कर दिया।लार्ज स्केल मैप के बिना वैज्ञानिक संस्थाएं जुटाए गए आंकड़ों को भविष्य की प्लानिंग के हिसाब से उपलब्ध कराने में असमर्थ होती हैं। लिहाजा, इस स्थिति को देखते हुए राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने इंफार्मेशन टेक्नोलाजी डेवलपमेंट एजेंसी (आइटीडीए) से क्षेत्र का ड्रोन सर्वे कराया।इसके बाद जो मैप तैयार किया गया, वह उपयुक्त नहीं पाया गया। क्योंकि, वैज्ञानिक संस्थाओं को मैप के दो सेंटीमीटर भाग को धरातल पर अधिकतम दो मीटर तक स्पष्ट करने की जरूरत थी।इस मैप में धरातल की स्थिति स्पष्ट करने के लिए टेरेन माडलिंग व एलिवेशन माडलिंग की जरूरत थी। राज्य में इस तरह के कंटूर मैप बनाने के विशेषज्ञ न खोज पाने के बाद अधिकारी भारतीय सर्वेक्षण विभाग की शरण में पहुंचे। जिसके बाद भारतीय सर्वेक्षण विभाग के विशेषज्ञों ने राज्य के मानचित्रीकरण के तकनीकी कार्मिकों को प्रशिक्षित किया।अब जाकर लार्ज स्केल कंटूर मैप पर तस्वीर साफ हो पाई है। बताया जा रहा है कि सोमवार तक निर्धारित मानक का कंटूर मैप जीएसआइ व अन्य एजेंसियों के सुपुर्द कर दिया जाएगा। ताकि वह जुटाए गए आंकड़ों को मैप में प्लाट कर रिपोर्ट सरकार को सौंप सकें।सबसे पहले बात करते हैं लार्ज स्केल मैप की। दो सेंटीमीटर कंटूर इंटरवल वाले मैप में नक्शे के दो सेंटीमीटर भाग में धरातल की दो मीटर तक आकार वाली वस्तु को स्पष्ट दर्शाया जा सकता है। ऐसे मैप कंटूर श्रेणी के हों तो उसमें धरातल की चट्टानों, पहाड़ियों की ऊंचाई भी दर्शित की जा सकती है।भूधंसाव कि स्थिति किस धरातल पर कैसी है, यह जानने व उसकी गंभीरता के लिए कंटूर मैप की जरूरत पड़ती है। इसी आधार पर सरकारी एजेंसियां व अन्य तकनीकी एजेंसियां यह तय कर पाएंगी कि जोशीमठ क्षेत्र में भविष्य की कैसी प्लानिंग जरूरी है।. जोशीमठ में हो रहे भू धंसाव से अब उत्तराखंड की बड़ी आपदाओं का जिक्र छिड़ गया है कि क्यों सरकारों ने समय पर सबक नहीं लिया और विकास के नाम पर अधांधंंध निर्माण से इस पहाड़ी राज्य के पहाड़ों का छलनी कर दिया. परिणाम ये हुए कि आज एक शहर डूब रहा है. अब बात करते हैं उत्तराखंड की उन बड़ी त्रासदियों की जिनके जख्म जोशीमठ के बहाने हरे हो गए हैं मगर हुकुमतें आज भी बेखबर हैं.सरकार यदि इन प्रमुख बिंदुओं पर फोकस करते हुए जोशीमठ प्रकरण की पड़ताल करे तो इससे उत्तराखंड के विकास का मॉडल तैयार हो सकता है।लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।