पहली बार देश के तीन पदक पक्के; दीपक भूरिया, निशांत देव और हुसामुद्दीन ने किया कमाल
विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप के इतिहास में पहली बार भारतीय मुक्केबाजों ने तीन पदक पक्के कर लिए हैं। हरियाणा के दीपक भूरिया (51), सेना के मोहम्मद हुसामुद्दीन (57) और हरियाणा के ही निशांत देव (71 भार वर्ग) ने इतिहास रचते हुए सेमीफाइनल में प्रवेश कर लिया। इन तीनों मुक्केबाजों ने कम से कम कांस्य पदक पक्का कर लिया है। इससे पहले 2019 में अमित पंघाल का रजत और मनीष कौशिक का कांस्य जीतना देश का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा है। तीनों ही मुक्केबाजों के पास फाइनल में पहुंचने का मौका है।
हुसामुद्दीन को कड़े संघर्ष में मिली जीत
दीपक ने पेरिस ओलंपिक में शामिल 51 भार वर्ग के क्वार्टर फाइनल में किर्गिस्तान के नूरझिगित दियूशेबायेव को आसानी से 5-0 से पराजित किया। दीपक का इस कदर दबदबा रहा कि अंतिम दौर में रेफरी को विरोधी मुक्केबाज के खिलाफ दो बार गिनती गिननी पड़ी। दीपक अंतिम चार में फ्रांस के बेनामा से खेलेंगे। राष्ट्रमंडल खेल में दो कांस्य जीतने वाले हुसामुद्दीन ने अंतिम 8 में बुल्गारिया के पांचवीं वरीय जे डियाज इबानेज को कड़े संघर्ष में 4-3 से पराजित किया। वह सेमीफाइनल में क्यूबा के सैंदल होर्ता से खेलेंगे। वहीं 22 वर्षीय राष्ट्रीय चैंपियन निशांत देव ने क्यूबा के जॉर्ज कुएलर को 5-0 से हराया। पिछली विश्व चैंपियनशिप में निशांत को क्वार्टर फाइनल में हार मिली थी। निशांत सेमीफाइनल में कजाखस्तान के एशियाई चैंपियन असलान शिमबर्गेनोव से खेलेंगे।
दीपक को बॉक्सिंग के लिए अखबार बेचने पड़े थे
हिसार (हरियाणा) केदीपक का शुरुआती जीवन बेहद कष्टप्रद रहा है। 2008 में दीपक ने मुक्केबाजी शुरू की, लेकिन अगले ही साल आर्थिक दिक्कतों के चलते उन्होंने यह खेल छोड़ दिया। कोच राजेश श्योराण उन्हें फिर इस खेल में ले आए। इसके बाद फिर वह चोटिल हो गए और 2015 में मुक्केबाजी जारी रखने के लिए अखबार भी बेचने पड़े। 2016 से मद्रास इंजीनियरिंग ग्रुप में शामिल होने के बाद उनकी स्थिति बदली तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
विश्व चैंपियनशिप में भारत के पदक विजेता
2009-विजेंदर सिंह (कांस्य)
2011-विकास कृष्ण (कांस्य)
2015-शिवा थापा (कांस्य)
2017-गौरव बिधूड़ी (कांस्य)
2019-मनीष कौशिक (कांस्य)
2019-अमित पंघाल (रजत)
2021-आकाश कुमार (कांस्य)