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राष्ट्रीय राजनीति नहीं, अब प्रदेश ही है हरीश रावत की चाहत; दिए ये संकेत

देहरादून : पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत राष्ट्रीय राजनीति से मुंह मोड़कर केवल प्रदेश की राजनीति में रमना चाहते हैं। इन कयासों को कहीं और से नहीं, बल्कि स्वयं हरीश रावत से बल मिला है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल से उत्साहित रावत ने कांग्रेस नेतृत्व को बधाई के लिए शुक्रवार को दिल्ली जाने की बात कही, साथ में इसे राजनीतिक उद्देश्य से दिल्ली का लगभग अंतिम प्रवास घोषित कर दिया। यही नहीं, जीवन का शेष समय उत्तराखंड कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने में लगाने की इच्छा भी उन्होंने जता दी। अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले हरीश रावत की इस रुख से प्रदेश में कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में हलचल तेज होना तय है।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में एग्जिट पोल ने कांग्रेस के भीतर नया जोश फूंका है। विशेष रूप से उत्तराखंड जैसे प्रदेशों में जहां कांग्रेस दूसरे नंबर की पार्टी है, वहां सत्ता में वापसी को लेकर मनोबल बढ़ता दिखाई दे रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गुरुवार को इंटरनेट मीडिया पर अपनी पोस्ट में कर्नाटक के बहाने कांग्रेस की बढ़ती उम्मीदों के साथ अपनी इच्छा की अभिव्यक्ति भी कर दी। वह शुक्रवार को कांग्रेस नेतृत्व को कर्नाटक की निश्चित जीत के लिए बधाई देने दिल्ली जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि राजनीतिक उद्देश्य से दिल्ली का यह लगभग अंतिम प्रवास होगा। वह अपने जीवन की शेष शक्ति प्रदेश कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने में लगाना चाहते हैं।

उन्होंने कहा कि वर्ष 2017 में प्रदेश में जिस समय कांग्रेस की हार हुई, लगभग संपूर्ण नेतृत्व उनके हाथ में था। यदि कांग्रेस का नुकसान हुआ है तो उसकी भरपाई का प्रयास भी उन्हें ही करना चाहिए। प्रदेश में सक्रिय होने की उनकी चाहत से वर्तमान नेतृत्व में खलबली न मचे, इसे लेकर भी उन्होंने स्थिति स्पष्ट करने में देर नहीं लगाई। उन्होंने कहा कि वह भरपाई का काम करेंगे, लेकिन यह सामान्य कांग्रेसजन की भांति होगा। उन्हें किसी पद की आकांक्षा नहीं है और वह चतुर्भुज नेतृत्व को निरंतर शक्ति देते रहेंगे

हरीश रावत की इस पोस्ट को कांग्रेस के भीतर राष्ट्रीय राजनीति की बदलती परिस्थितियों के तौर पर भी देखा जा रहा है। बीते वर्ष 2022 के मार्च माह में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को लगातार दूसरी बार पराजय मिलने और इसके कुछ महीने बाद ही हरिद्वार में पंचायत चुनाव में पार्टी को झटका लगने के बाद हरीश रावत पार्टी के भीतर ही निशाने पर आ गए थे। यह अलग बात है कि उन्होंने इस हार की जिम्मेदारी पूरी तरह कभी नहीं ली, बल्कि चुनाव संयुक्त नेतृत्व में लड़ने की पैरवी करने वालों पर ठीकरा फोड़ा। बढ़ती उम्र के बावजूद राजनीतिक सक्रियता में प्रदेश संगठन से लेकर पार्टी के क्षत्रपों को कहीं पीछे छोडऩे वाले राजनीति के इस धुरंधर ने बढ़ते आक्रमण के जवाब में दिल्ली का रुख करने की घोषणा की थी। रावत के इस कदम को तब पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में वर्चस्व की उनकी इच्छा से जोड़ा गया था।

कुछ महीनों बाद अब प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने और दिल्ली प्रवास को राजनीतिक रूप से लगभग अंतिम बताकर हरीश रावत एक तीर से कई निशाने साधते दिखते रहे हैं। कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव और कांग्रेस कार्यसमिति सदस्य रहते हुए उन्हें पहले असम और फिर पंजाब का प्रभारी बनाया जा चुका है। बीते वर्ष विधानसभा चुनाव से पहले उत्तराखंड में पार्टी के लिए काम करने की उनकी इच्छा को देखते हुए ही कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें पंजाब कांग्रेस प्रभारी के पदभार से मुक्त किया था।

माना जा रहा है कि रावत अब राष्ट्रीय राजनीति में ऐसी किसी जिम्मेदारी नहीं चाहते। यद्यपि, घोषणा के माध्यम से उन्होंने जिस प्रकार संदेश दिया है, पार्टी के भीतर एक धड़ा उसे पार्टी नेतृत्व को उनकी ओर से दिए जा रहे संकेत के रूप में देख रहा है। अगले वर्ष लोकसभा चुनाव होने हैं। हरिद्वार संसदीय सीट से खम ठोकने की चाहत रख रहे हरीश रावत को पार्टी के भीतर से ही मजबूत चुनौती मिल रही है। इस चुनौती से निपटने के लिए रावत अपने तरीके से प्रदेश में राजनीतिक बिसात बिछाने के मूड में हैं।

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