सीनियर खिलाड़ियों का मजाक उड़ाते थे छेत्री, कप्तानी ने बदला खेल के प्रति नजरिया
सुनील छेत्री अंतरराष्ट्रीय करिअर के अपने शुरुआती दिनों में पीछे बैठा करते थे और सीनियर खिलाड़ियों का मजाक उड़ाते थे लेकिन 2011 में जब उन्हें कप्तान बनाया गया तो यह सब बदल गया क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि उन्हें टीम के लिए उदाहरण पेश करने की जरूरत है। महान फुटबॉलर बाईचुंग भूटिया के 2011 एशियाई कप के बाद संन्यास लेने पर तत्कालीन कोच बॉब हॉटन ने दो महीने बाद मलयेशिया में होने वाले एएफसी चैलेंज कप क्वालिफायर्स में युवा टीम की अगुआई करने की जिम्मेदारी छेत्री को सौंपी और उन्हें कप्तान बनाया।
छेत्री ने कहा, ‘जिस दिन मुझे (कप्तान का) आर्मबैंड दिया गया, यह मलयेशिया में बॉब हॉटन ने किया था, उसी समय तुरंत दबाव आ गया था क्योंकि मैं पीछे बैठने वालों में था। मैं, स्टीवन (डियाज) और (एनपी) प्रदीप, सीनियर खिलाड़ियों का मजाक उड़ाते थे, मैं ऐसा ही था। सब कुछ मजाक था और मैं शरारती था। लेकिन जब मैंने आर्मबैंड पहना तो शुरुआती तीन-चार मैचों के लिए मैंने आगे बैठना शुरू कर दिया।’
खुद की जगह टीम के बारे में शुरू किया सोचना
छेत्री ने कहा कि कप्तान बनने के बाद खेल को लेकर अपना रवैया बदला क्योंकि मुझे उदाहरण पेश करने की जरूरत थी। उन्होंने कहा, ‘इससे पहले यह मानसिकता थी कि मैं सुनील छेत्री हूं- मेरा ड्रिबल, मेरा पास, मेरा क्रॉस, मेरा गोल। लेकिन अब आप अपने अलावा टीम के बारे में भी सोच रहे थे, मैदान के अंदर भी और बाहर भी और इससे पहले जब मैं खुद को इस तरह सोचने के लिए बाध्य करता था तो मैं डर जाता था। मैंने खुद से कहा कि सहज रहो, अब भी वही काम करना है। मैदान के अंदर और बाहर अच्छा उदाहरण बनो