प्रशिक्षण शिविर: चने की फसल को गलन जैसे रोगों से बचाव के उपाय बताए
अजमेर तबीजी ग्राह्य परीक्षण केंद्र में गुरुवार को चना फसल को कीटों व रोगों से बचाने के लिए प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। उपनिदेशक कृषि मनोज कुमार शर्मा ने बताया कि चने के लिए लवण व क्षार रहित जल निकास वाली उपजाऊ भूमि उपयुक्त रहती है। चने की बुवाई के लिए अक्टूबर व नवंबर के बीच का समय सबसे अधिक उपयुक्त है। फसल को कीटों व रोगों से बचाकर उत्पादन में बढ़ोतरी की जा सकती है। कृषि अनुसंधान अधिकारी डॉ. जितेन्द्र शर्मा ने बताया कि चने की फसल में जड़ गलन व सूखा जड़ गलन व उकठा जैसे हानिकारक रोगों का प्रकोप होता है।
इन रोगों से बचाव के लिए ट्राइकोडर्मा से भूमि उपचार करना चाहिए। बुवाई से पूर्व 10 किलो ट्राइकोडर्मा को 200 किलो आर्द्रता युक्त गोबर की खाद में मिला कर 10-15 दिन छाया में रखकर मिश्रण को बुवाई के समय प्रति हैक्टेयर की दर से पलेवा करते समय मिट्टी में मिलाएं। बीजों को 1 ग्राम कार्बेंडाजिम एवं थाइरम 2.5 ग्राम या ट्राइकोडर्मा 10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बोना चाहिए। डॉ. दिनेश स्वामी ने कहा कि बताया कि चने की फसल में दीमक, कट वर्म व वायर वर्म की रोकथाम के लिए क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से आखिरी जुताई से पूर्व छिड़काव करने के लिए कहा। दीमक से बचाव के लिए बीजों को फिप्रोनिल छिड़कें