Fri. Nov 1st, 2024

शालीनता के कपडे पहनने के लिए हो रही महाभारत?

एक जमाना था जब महिलाओं के कपडों का चीरहरण करने पर महाभारत होती थी। लेकिन अब जमाना बदल गया है। अब अगर किसी को शालीनता से कपडे पहनने के लिए कहें तो महाभारत हो रही है।  लेकिन जैसे -जैसे समय गुजरता गया। यह शालीनता लुप्ति के कागार पर खडी हो गयी है।  युवा वर्ग दिखावे पर मर रहे है। फिल्म एक्टर व अभिनेत्रियों की तरह  फैशन कर अपने को सोशल मीडिया पर अपने को अपलोड कर लाइक पाने के लिए सारी हदें पार कर रहे

आजकल कोई संस्कारों ,संस्कृति, सभ्यता, का कोई महत्व नहीं है ।आजकल लोग दिखावे पर मरते हैं।वो फिल्मों इत्यादि से ज्यादा प्रभावित होते है फिल्में तो इसलिए तो बनाई जाती है एक्टर ,ऐक्ट्रेस इत्यादि को ऐसे कपड़े पहनाए जाते हैं जिससे वो ज्यादा भीड़ बटोर सके और उनकी कमाई हो सके लेकिन जनता उन्हीं को अपना आदर्श मानकर वैसे ही कपड़े पहन रही हैं उनको लगता है कि ऐसा करने से वो ज्यादा अडवांस दिखेंगे।वो किसी से कम न रहें चाहे कुछ भी करना पड़े वो टिकटोक फेसबुक इत्यादि पर लाइक पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार  हैं कपड़े उतारना क्या चीज है वो किसी से पीछे न रह जाये इसलिए वो शरीर ढकने का विरोध करते हैं।वोनए तरह फोटो वीडियो खींच कर अपलोड करने के चक्कर में अपनी और दूसरों की जान खतरे में डालने तक का खतरा उठा लेते हैं आगे क्या कहें।

जिज्ञासा उनको यह जिज्ञासा है कि अगर हम ऐसा करेंगे तो क्या होगा अगर नहीं करेंगे तो क्या होगा यह ना भारतीय हैं ना विदेशी असमंजस में लटके हुए हैंं लड़का हो या लड़की आदमी हो या औरत सबको यह दिखाना होता है कि वह कितने सुंदर है उनकी वेशभूषा कैसी है लोग उनको किस तरह से देखते हैं इस बात से उनको कोई फर्क नहीं पड़ता पूछ लो उनकी आलोचना कर रहे हैं यह संस्कारों की कमी है क्योंकि लड़कियों को अपनी जरूरत है पूरी करने के लिए पैसे चाहिए जो उनके पास है नहीं क्योंकि मां-बाप की अग्नि की एक लिमिट है इसलिए कई बार कुछ लड़कियां गलत रास्तों पर भी चल पड़ती है। प्राइवेट सैक्टर के किसी भी आफिस में इस प्रकार की महिलाएं आपकों दिख जाएगी। महानगरों में यह कल्चरल तेजी से फैल रहा है। उनकी नकल आसपास के क्षेत्र में पडने वाले जिलों के युवा वर्ग कर रहा है। अगर कोई उनको कपडे पहनने पर कुछ सलाह देता है तो उनका  सबसे बडा दुश्मन बन जाता है। इस अशलील पहनावे के कारण महिलाओं के प्रति अपराध में बाढ सी आ गयी है। आप किसी भी शहर का क्राइम इतिहास उठा देख लो । शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो जब वहां पर किसी महिला के साथ छेडछाड व रेप की  घटना न हो। अगर इस तरह के पहनावें को रोकना है जो पूरी तरह फूतड लगता हो तो । इसके लिए सामाजिक संगठनों को आगे आना होगा। युवा वर्ग को पहवाने के लिए बारे में बताने के लिए जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। तभी हमारी पुरानी संस्कृति लैाट सकती है।

विदेश का उदाहरण ही ले वो हमारी संस्कृति से इतने ज्यादा प्रभावित हो रहे है। हमारी संस्कृति को अपना रहे है। आपको दिल्ली के पहाडगंज ,चांदनी चौक, मथुरा, वृदावन, आगरा, महाराष्ट्र  आदि काफी ऐसे स्थान है जब विदेशी महिलाएं सूट सलवार व साडी में आपको नजर आ जाएंगी। जब वो हमारी संस्कृति को ग्रहण कर रही है तो हमें अपनी संस्कृति को आपनाने कैसा गुरेज ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *