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विद्यार्थियों ने फल और सब्जियों के छिलकों से बनाया बायोडीजल, कार्बन उत्सर्जन शून्य

रसोई घर के कचरे अथवा बचे हुए खाने, फल, सब्जियों के छिलकों से ईको फ्रेंडली बायोडीजल तैयार किया गया है। इस बायोडीजल के इस्तेमाल से का कार्बन उत्सर्जन नाम मात्र होगा। यह कार्बन उत्सर्जन उतनी मात्रा में होगा जितना फल सब्जियों की सड़न के जलने पर होता है। कार्बन उत्सर्जन नाम मात्र होने से ईको फ्रेंडली बायोडीजल कहना भी गलत नहीं होगा। सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करते हुए कांगड़ा जिले की राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला बालकरूपी की छात्रा शायना और शिवम ने ईको फ्रेंडली बायोडीजल बनाने में सफलता हासिल की है।

विद्यार्थियों ने इस प्रोटोटाइप को वे टू स्मार्ट सोलर एनर्जी इनटू सस्टेनेबल बायोडीजल एंड इलेक्ट्रिसिटी नाम दिया है। रसायन विज्ञान के प्रवक्ता तिलक राणा के मार्गदर्शन में विद्यार्थियों ने यह मॉडल प्रोटोटाइप तैयार किया है। महज तीन हजार की लागत से प्रेशर कुकर, हीटर और सोलर पैनल के इस्तेमाल कर बायोडीजल तैयार किया गया है। तिलक राणा का कहना है कि महज चार किलो कचरे में एक लीटर बायोडीजल तैयार किया जा सकता है। यदि इथनोल बनाते वक्त सड़न प्रक्रिया में गुड़ का इस्तेमाल करें तो उत्पादन में कई गुना इजाफा हो सकता है। एक लीटर बायोडीजल की लागत बड़े स्तर पर उत्पादन करने पर बीस रुपये के लगभग लागत आएगी। प्रक्रिया के दौरान बचे हुए कचरे को जैविक खाद के रूप में खेतों में इस्तेमाल किया जा सकता है।

एलडीआर सेंसर तकनीक का इस्तेमाल करते हुए विद्यार्थियों ने डयूल एक्सेस सोलर पैनल विकसित किया है। सोलर पैनल रोशनी को सेंस करते हुए सूर्य की तरफ घूमेगा, जिससे दिनभर सौर ऊर्जा से बिजली तैयार होगी। सौर ऊर्जा से तैयार बिजली को बैटरी में स्टोर करने के बाद कचरे से इथनोल बनाए गए तरल पदार्थ को कंटेनर में वाष्पीकरण प्रक्रिया से गुजारा जाएगा। प्रोटाइप में प्रेशर कुकर का इस्तेमाल कर पाइप के जरिये वाष्पीकरण कर संघनन प्रक्रिया से भाप को पानी में बदला जाएगा। इसके बाद कॉपर की पाइप से संघनन प्रक्रिया से भाप बने पानी को गुजारा जाएगा जिससे बायोडीजल तैयार होगा।

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