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एफआरआई च्यूरा को कर रहा पुनर्जीवित

चंपावत। कुमाऊं के पहाड़ी जिलों में पाए जाने वाले कल्पवृक्ष के नाम से मशहूर च्यूरा के पेड़ प्रकृति की अनमोल धरोहर हैं। च्यूरा औषधीय गुणों से भरपूर है। एफआरआई ने च्यूरा प्रजाति को फिर से पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया गया है। प्रभागीय वनाधिकारी आरसी कांडपाल के अनुसार च्यूरा वृक्ष से वनस्पति घी और शहद का उत्पादन होने के साथ ही इसके पत्ते कंपोस्ट खाद के रूप में काफी मददगार होते हैं। चंपावत वन प्रभाग के काली कुमाऊं रेंज के छीड़ा बीट में एफआरआई ने प्रयोगशाला और च्यूरा की नर्सरी बनाई है। यहां अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर और चंपावत जिले में उगने वाले च्यूरा प्रजाति के आठ हजार से अधिक पौधे रोपे गए हैं। च्यूरा एक समय में जिले के विभिन्न स्थानों पर काफी मात्रा में होता था, लेकिन इसका उपयोग कम होने के कारण इसका उत्पादन सिमटने लगा।

सर्दियों में हाथ पैर फटने, गठिया रोग और एलर्जी के लिए च्यूरा रामबाण का काम करता है। इससे निकलने वाला घी काफी कारगर साबित होता है। अधिकतर ग्रामीण क्षेत्र के लोग आज भी तेल के रूप में इसका प्रयोग करते हैं।
क्या है च्यूरा
च्यूरा का वानस्पतिक नाम डिप्लोनेमा बुटीरेशिया है। समुद्र तल से तीन हजार फीट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों तक इसके पेड़ 12 से 21 मीटर तक लंबे होते हैं। इसकी पत्तियां चारे और भोजन पत्तल के अलावा धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग में लाई जाती है। च्यूरे की खली मोमबत्ती, वैसलीन और कीटनाशक बनाने के काम आती है। स

जिले के छीड़ा में वन प्रभाग में च्यूरा की नर्सरी बनाई गई है। इसमें पहली बार में आठ हजार पौघों का उत्पादन किया जा रहा है। जैसे-जैसे मांग बढ़ेगी, पौधों का उत्पादन बढ़ाया जाएगा। – राजेश जोशी, वनक्षेत्राधिकारी, काली कुमांऊ रेंज।

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