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श्रीलंका में फिर रुक सकेगा चीन का जासूसी जहाज ड्रैगन के विरोध के बाद बैन हटाया; फरवरी में मालदीव पहुंचा था चीनी जहाज

श्रीलंका ने अब विदेशी रिसर्च जहाजों को अपने पोर्ट पर रुकने की इजाजत दे दी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन की तरफ से विरोध किए जाने के बाद श्रीलंका ने विदेशी जहाजों के रुकने पर लगा बैन हटा दिया है।

दरअसल, हाल ही में पड़ोसी देश ने एक जर्मन रिसर्च वेसल को अपने पोर्ट पर रुकने की इजाजत दी थी। इस पर चीन की एम्बेसी ने विरोध जताया कि जब फरवरी में उनके जहाज को रुकने की अनुमति नहीं मिली थी, तो जर्मनी के जहाज को क्यों रुकने दिया गया।

भारत की चिंता के बाद श्रीलंका ने लगाया था बैन
इसके बाद श्रीलंका के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा- विदेशी जहाजों हमारे पोर्ट पर रुककर रिसर्च नहीं कर सकते। लेकिन ये ईंधन भरने के लिए यहां रुक सकते हैं। दरअसल, पिछले साल श्रीलंका में 2 चीनी खुफिया जहाज रुके थे। इस पर भारत और अमेरिका ने हिंद महासागर में सुरक्षा की चिंता जताते हुए विरोध किया था।

भारत के दबाव के बाद श्रीलंका ने विदेशी जहाजों के रुकने पर बैन लगा दिया था। श्रीलंका के विदेश मंत्री ने कहा था- भारत की चिंता हमारे लिए बेहद अहम है। हमने इसके लिए अब एक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) बनाया है और इसे बनाते वक्त भारत सहित दूसरे दोस्तों से सलाह भी ली थी। इसके बाद इस साल फरवरी में चीन का जासूसी जहाज श्रीलंका की जगह मालदीव की राजधानी माले के पोर्ट पर रुका था।

चीन के पास कई जासूसी जहाज हैं। वो भले ही कहता हो कि वो इन शिप का इस्तेमाल रिसर्च के लिए करता है, लेकिन इनमें पावरफुल मिलिट्री सर्विलांस सिस्टम होते हैं। मालदीव और श्रीलंकाई बंदरगाह पर पहुंचने वाले चीनी जहाजों की जद में आंध्रप्रदेश, केरल और तमिलनाडु के कई समुद्री तट आ जाते हैं।

एक्सपर्ट का कहना है कि चीन ने भारत के मुख्य नौसेना बेस और परमाणु संयंत्रों की जासूसी के लिए इस जहाज को श्रीलंका भेजा है। चीन के जासूसी जहाजों में हाई-टेक ईव्सड्रॉपिंग इक्विपमेंट (छिपकर सुनने वाले उपकरण) लगे हैं। यानी श्रीलंका के पोर्ट पर खड़े होकर यह भारत के अंदरूनी हिस्सों तक की जानकारी जुटा सकता है।

साथ ही पूर्वी तट पर स्थित भारतीय नौसैनिक अड्डे इस शिप की जासूसी के रेंज में होंगे। चांदीपुर में इसरो के लॉन्चिंग केंद्र की भी इससे जासूसी हो सकती है। इतना ही नहीं देश की अग्नि जैसी मिसाइलों की सारी सूचना जैसे कि परफॉर्मेंस और रेंज के बारे में यह जानकारी चुरा सकता है।

एक महीने से ज्यादा समय से भारत इस जासूसी जहाज पर कड़ी नजर रख रहा है। यह 23 सितंबर को मलक्का जलडमरूमध्य से हिंद महासागर में पहुंचा। 10 सितंबर को अपने होमपोर्ट गुआंगजौ से निकलने के बाद इसे 14 सितंबर को सिंगापुर में देखा गया था।जासूसी जहाजों को चीन की सेना ऑपरेट करती है
चीन के पास कई जासूसी जहाज हैं। ये पूरे प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागर में काम करने में सक्षम हैं। ये शिप जासूसी कर बीजिंग के लैंड बेस्ड ट्रैकिंग स्टेशनों को पूरी जानकारी भेजते हैं। चीन युआन वांग क्लास शिप के जरिए सैटेलाइट, रॉकेट और इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल की लॉन्चिंग को ट्रैक करता है।अमेरिकी रक्षा विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, इस शिप को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी यानी PLA की स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स यानी SSF ऑपरेट करती है। SSF थिएटर कमांड लेवल का ऑर्गेनाइजेशन है। यह PLA को स्पेस, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक, इन्फॉर्मेशन, कम्युनिकेशन और साइकोलॉजिकल वारफेयर मिशन में मदद करती है।

 

चीन के जासूसी जहाज पावरफुल ट्रैकिंग शिप हैं। ये शिप अपनी आवाजाही तब शुरू करते हैं, जब भारत या कोई अन्य देश मिसाइल टेस्ट कर रहा होता है। शिप में हाईटेक ईव्सड्रॉपिंग इक्विपमेंट (छिपकर सुनने वाले उपकरण) लगे हैं। इससे यह 1,000 किमी दूर हो रही बातचीत को सुन सकता है।

मिसाइल ट्रैकिंग शिप में रडार और एंटीना से बना इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम लगा होता है। ये सिस्टम अपनी रेंज में आने वाली मिसाइल को ट्रैक कर लेता है और उसकी जानकारी एयर डिफेंस सिस्टम को भेज देता है। यानी, एयर डिफेंस सिस्टम की रेंज में आने से पहले ही मिसाइल की जानकारी मिल जाती है और हमले को नाकाम किया जा सकता है।

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