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शीत ऋतु में 20 से 25 फीसदी होने वाली बारिश अब पांच फीसदी में सिमटी

नैनीताल। अगर हम समय पर नहीं चेते तो जल्द ही एक-एक बूंद पानी के लिए तरस जाएंगे। लगातार बारिश की कमी के चलते झील व स्त्रोत सूखने की कगार पर पहुंच चुके हैं। एक शोध में सामने आया है कि 15 नवंबर से 15 अप्रैल तक होने वाली 20 से 25 फीसदी बारिश अब मात्र पांच फीसदी तक सिमट गई है। ऐसे में वह दिन दूर नहीं जब पानी की बूंद-बूंद को कई किलोमीटर की दौड़ लगानी होगी। कुमाऊं विश्वविद्यालय के आईसीएसएसआर सीनियर फेलो व भूगोल विभाग से सेवानिवृत्त प्रो. पीसी तिवारी ने बताया कि उनकी टीम यूनाइटेड किंगडम की न्यू कैसल विश्वविद्यालय के साथ रामगढ़, मुक्तेश्वर समेत अन्य क्षेत्रों में जाकर जलवायु परिवर्तन पर शोध कार्य कर रही है। प्रो. तिवारी ने बताया कि जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड में 15 नवंबर से 15 अप्रैल तक शीत व बसंत ऋतु में 20 से 25 फीसदी और मानसून में 75- 80 फीसदी बारिश होती थी। लेकिन अब शीत व बसंत ऋतु में 5 से 10 फीसदी ही बारिश हो रही है। कहा करीब 15 साल पहले तक पश्चिमी हिमालय में नवंबर से अप्रैल तक के माह में बारिश होती थी, लेकिन अब बारिश नहीं हो रही है।

नैनीताल। प्रो. पीसी तिवारी के अनुसार वर्षा में कमी दर्ज होने से पानी की समस्या, स्वास्थ्य, आजीविका पर असर पढ़ेगा। साथ ही वनाग्नी की घटना बढ़गी और जिन जंगलों तक वर्तमान में आग नहीं लगी वहां तक आग लगने की संभावना है।
पर्यटकों का बढ़ता दबाव भी होगा पानी की कमी का एक कारण
नैनीताल। प्रो. पीसी तिवारी बताते हैं कि बीते चार-पांच वर्षों से उत्तराखंड में लाखों सैलानी पहुंच रहे हैं। यहां सालभर सैलानियों का आवागमन रहता है। उसकी सुविधाओं के लिए होटलों, होमस्टे की संख्या बढ़ रही है। ऐसे में सैलानियों के पहुंचने पर पानी की खपत बढ़ जाती है। बाथ टप और सावर का उपयोग करने से पानी ज्यादा मात्रा में खत्म हो रहा है।

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