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मंडुवे के हरे तने के रस में पोषक तत्वों पर शोध करेंगे वैज्ञानिक, तनाव रोकने के लिए फायदेमंद

उत्तराखंड में उत्पादित मंडुवा (कोदा) और हरे तने के रस में मौजूद पोषक तत्वों को प्रमाणित करने के लिए भारतीय श्रीअन्न अनुसंधान संस्थान हैदराबाद शोध करेगा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने संस्थान को शोध की जिम्मेदारी सौंपी है। पहली बार अल्मोड़ा स्थित विवेकानंद पर्वतीय अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने मंडुवे के तने के रस पर शोध किया था। जिसमें पाया गया कि रस में पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व और एंटी ऑक्सीडेंट है। जो तनाव के दुष्प्रभाव को रोकने के लिए फायदेमंद है।
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में मंडुवे की खेती परंपरागत फसल के रूप में जाती है। श्रीअन्न योजना के तहत मोटे अनाज के रूप में मंडुवे का पहचान मिलने से मांग भी बढ़ रही है। राज्य कर विभाग से सेवानिवृत्त अधिकारी एसपी नौटियाल की पहल पर पहली बार भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अल्मोड़ा स्थित विवेकानंद पर्वतीय अनुसंधान संस्थान ने मंडुवे के हरे तने के रस पर शोध किया था।

इसमें वैज्ञानिकों ने मंडुवे की 11 प्रजातियों के हरे तने से रस निकाल कर पोषक तत्वों का अध्ययन किया। जिसमें पाया गया कि तने में 76.9 प्रतिशत रस और 3.1 प्रतिशत शुष्क पदार्थ होता है। रस में मिठास की मात्रा औसतन 3.1 डिग्री ब्रिक्स पाई गई। इसका मतलब 100 ग्राम रस में 31 ग्राम सुक्रोज घुला है। इसके अलावा एंटी ऑक्सीडेंट और मेटाबोलाइट की मात्रा 0.11 से 0.49 मिलीग्राम तक है। पोटेशियम, सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंक, तांबा, आयरन आदि समेत कई पोषक तत्व मौजूद हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के प्रधान वैज्ञानिक संजीव कुमार झा के पत्र के अनुसार मंडुवे के तने के रस का परीक्षण व अध्ययन को प्रमाणित करने के लिए भारतीय श्रीअन्न अनुसंधान हैदराबाद को शोध कार्य दिया गया है। जिससे मंडुवे के रस का मूल्य वर्धित कर संभावित उत्पादों में इस्तेमाल का पता लगाया जा सके।

राज्य के नौ पर्वतीय क्षेत्रों में आज भी किसान परंपरागत फसल के रूप में मंडुवे की खेती करते हैं। लगभग 74 हजार हेक्टेयर पर सालाना 1.10 लाख मीट्रिक टन उत्पादन होता है। प्रदेश सरकार राज्य मिलेट मिशन के तहत भी मोटे अनाजों की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है

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