यज्ञीय ऊर्जा और मंत्रों से मनौवैज्ञानिक चिकित्सा
हम सभी जिस संसार में रहते हैं उसे हमारे अध्यात्म में भौतिक कहा गया है , इसका अर्थ यह भी है कि इस संसार से परे बहुत कुछ ऐसा है जो यद्यपि अभौतिक है और जिसे भले ही हम सीधे सीधे अपनी ज्ञानेंद्रियों से महसूस न कर पायें लेकिन उसका एक शक्तिशाली अस्तित्व है और उसका आभास हम सभी को तब होता है जब हम दुःख, परेशानियों, समस्याओं से घिरे हुये महसूस करने लगते हैं, प्रार्थना और मंत्र शक्ति ऐसी ही अभौतिक शक्तियां हैं। मेरे गृह नगर खजुराहो स्थित *मतंगेश्वर* महादेव मंदिर के मुख्य पुरोहित आदरणीय चाचाजी श्री *बब्बू* *गौतम* जी के परामर्श से मुझे हाल ही में इनका बड़ा ही अतीन्द्रिय अनुभव हुआ। *भगवान* *मतंगेश्वर* *महादेव* की पूजा-अर्चना के दौरान, *भगवान* *गणेश* की पूजा-अर्चना के दौरान और परमपूज्य संतों, *आचार्य* *विद्यासागर* जी महाराज और *हनुमान* जी महाराज के अहैतुकी कृपा पात्र संत *मन्नत* बाबा जी के सानिध्य में रहने के दौरान ऐसे अनुभव हुये, यही अनुभव हुआ जब
इस वर्ष *गायत्री* *जयंती* और *गंगा* *अवतरण* दिवस *गंगा* *दशहरा* पर खजुराहो स्थित प्राचीन ऋषि-मुनियों की तपस्या स्थली श्री *त्रिलोखर* *धाम* में *पंच* *कुंडीय* गायत्री महायज्ञ आयोजित करवाने का पुनीत अवसर मिला जिसे मेरी एक प्रमुख बहन श्रीमति *वर्षा* *चतुर्वेदी* , जोकि रामराजा ओरछा धाम की हैं और उनके पति *विकास* *चतुर्वेदी* *छतरपुर जोकि *बुंदेलखंड* *विकास* *निधि* संगठन ( *निधि* कंपनी और *साख* सहकारी समिति )के प्रमुख हैं,के नेतृत्व में संचालित हुआ, इस महायज्ञ में सनातन की पताका विश्व में फहराने वाले बुंदेलखंड के महान संत *बागेश्वर* धाम पीठाधीश्वर *धीरेन्द्र* *कृष्ण* *शास्त्री* जी, क्षेत्र के प्रमुख संत *हरिहर* महाराज, गोवर्धन पीठ पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज के शिष्य स्वामी *राजेश्वरानंद* नंद जी महाराज का पदार्पण हुआ और उनके पावन आशीर्वाद की छत्रछाया में यज्ञ का प्रभाव *द्विगुणित* हो गया। महामंत्र गायत्री मंत्र ” *ॐ* *भूर्भुवः* *स्व* *तत्* *सवितुर्रवरेण्यं* *भर्गो* *देवस्य* *धीमहि* *धियो* यो *न* *प्रचोदयात्* , से मेरा परिचय मेरे पिता स्व *मथुरा* *प्रसाद* *शर्मा* जी ने कराया जोकि अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक वेद मूर्ति पं *श्रीराम* *शर्मा* *आचार्य* जी के निकट रिश्तेदार थे ने कराया तभी से मैं इस मंत्र को जप रहा हूं,इस कार्यक्रम के तुरंत बाद मुझे विश्व योग दिवस कार्यक्रम में भाग लेने के लिये फ्रांस यूरोप आना था जिसके लिये वाया स्पाइस जेट विमान से खजुराहो से दिल्ली होते हुये फ्रांस आना था लेकिन तभी मुझे संतों की अहैतुकी प्रेरणा से आदेश हुआ कि मुझे क्षेत्र में विहार कर रहे जैन संत *प्रणम्य* *सागर* जी महाराज, नीरज सागर जी महाराज का आशीर्वाद लेना है जोकि वर्तमान में सकरार जिला झांसी में विहार कर रहे हैं, मैंने अपने कार्यक्रम में परिवर्तन करते हुये सड़क मार्ग से सकरार होते हुवे झांसी से दिल्ली जाने का निश्चय किया और सकरार जाकर मुनीश्री प्रणम्य सागर जी महाराज का आशीर्वाद लिया और उनसे अर्हं योग को यूरोप में प्रचलित करने की आज्ञा प्राप्त की। दिल्ली से फ्रांस जाते समय जैसे ही मैंने विमान में प्रवेश किया, मुझे महसूस हुआ कि मेरे सहयात्री मुझमें किसी विशिष्ट आत्मा का दर्शन कर रहे हैं, उनका व्यवहार, आतिथ्य सत्कार सभी इसी ओर इंगित कर रहा था, हर कोई मुझसे मिलना चाह रहा था और उनमें से कई तो आशीर्वाद प्राप्त करने के भी इच्छुक थे, मैं यह महसूस कर रहा था कि ये संतों की अहैतुकी कृपा है जिसने मेरे व्यक्तित्व में यह आकर्षण उत्पन्न कर दिया है , मैं उस समय मेरे गुरु और ग्रहस्थ संत के रूप में सर्वविख्यात *आचार्य* *देव* *प्रभाकर* *शास्त्री* जी दद्दा जी की साक्षात कृपा और उनका साथ भी अनुभव कर रहा था जिन्हें फ्रांस बहुत पसंद था।
हवाई यात्रा के दौरान एक ऐसी विशेष घटना हुई जिसने मेरी सोच को परिपुष्ट भी कर दिया। मेरा जहाज अचानक ही एयर टरबुलैंस का शिकार हो गया जिससे वह हवा में ही अतिदबाब का शिकार होकर अनियमित गति से हिचकोले खाने लगा , अचानक हुई इस घटना से पायलट और दूसरे क्रू सदस्य भी परेशान हो गये , यद्यपि अपनी उद्घोषणा में वे सभी यात्रियों से सामान्य रहने की बार बार अपील कर रहे थे लेकिन हर यात्री की प्रकृति अलग होती है , एक यात्री की तबियत अचानक बहुत खराब हो गई, विमान में उद्घोषणा हुई कि यदि विमान में कोई चिकित्सक है तो वह इस यात्री की सहायता करें, एक चिकित्सक महोदय ने उस यात्री की शीघ्र चिकित्सा भी प्रारंभ कर दी लेकिन उसका कोई प्रभाव उस यात्री पर नहीं हो पा रहा था , तभी कुछ सहयात्रियों ने मुझसे यात्री को देख लेने के लिये कहा, मैंने उनसे निवेदन किया कि जब तक उसका इलाज कर रहे चिकित्सक हाथ नहीं खड़ा कर देते हैं तब तक मैं शांत रहूंगा, चिकित्सक के पीछे हटने पर मैं उस यात्री के पास गया जो लगभग अचेत हो चुका था, उसके माथे पर मैंने हाथ का स्पर्श किया और महामृत्युंजय मंत्र,” *ॐ* *त्र्यंबकं* *यजामहे* *सुगंधि* *पुष्टि* *वर्धनम* , *उर्वारुकमिव* *बंधनान* *मृतयोर्मुक्षीय* *मामृताम* । *आदिनाथ* *भगवान* के बीज मंत्र,”
*ॐ* ह्लीं *अर्हं* श्री *आदिनाथाय* *जिनेंद्राय* *नमः* , *शांतिनाथ* भगवान के बीज मंत्र *ॐ* ह्लीं *अर्हं* श्री *शांतिनाथाय* नमः और हनुमान चालीसा में उल्लेखनीय पंक्ति ‘ *नासे* *रोग* *हरै* *सब* *पीरा* *जपहि* *निरंतर* *हनुमत* बीरा ‘ का पाठ किया और जैन *णमोकार* मंत्र का पाठ किया और यज्ञ की *विभूति* खिलाई और उसके माथे पर लगाई तुरंत ही चमत्कार हुआ और वह यात्री सचेत हो गया और जोर जोर से मां मां ( अपनी भाषा में अम्मा )कहकर फूट फूटकर रोने लगा , मैंने उसे शांत किया और निश्चिंत होकर सोने का परामर्श दिया और वह यात्री भी निश्चिंत होकर सो गया, सभी यात्री आश्चर्य चकित हो गये और मुझे ऐसे प्रणाम करने लगे जैसे में कोई पहुंचा हुआ संत महात्मा हूं। ये हैं भारतीय संस्कृति और संतों की श्रेष्ठता, जिनके सानिध्य में रहने मात्र से मुझे एक ऐसी *अतीन्द्रिय* शक्ति का अनुभव हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ। मेरा जहाज तुर्की की राजधानी *इस्तांबुल* में रूका जहां जहाज के स्टाफ ने सम्मान पूर्वक मुझे बिजनेस क्लास में सीट दिलवाई और सभी यात्रियों के समक्ष मेरा सम्मान किया। यह सम्मान मेरा नहीं था , यह सम्मान भारतीय अध्यात्म, संस्कृति का था जिससे जीवन में इतनी *गहराई* पैदा होती है कि जब भी आप जीवन में परेशानियों, समस्याओं से दो-चार होते हैं ,आपको अपने आप उनसे लड़ने की सामर्थ्य पैदा हो जाती है।
पंडित सुधीर शर्मा, भारत के मंत्र चिकित्सक, यूरोप के फ्रांस, इटली, बेल्जियम में अर्हं योग प्रशिक्षक के रूप में दौरे पर।