आध्यात्मिक वक्ता चित्रलेखा ने सुनाई कहानी- ‘थर-थर कांप रहा था शेर और शांत खड़ी थी गाय’
सनातन धर्म में जातक कथाओं का विशेष महत्व है। इन कथाओं के माध्यम से लोगों को शिक्षा दी जाती है और उन्हें धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया जाता है। कथावाचक और आध्यात्मिक वक्ता चित्रलेखा ने अपने एक प्रवचन में ऐसी ही जातक कथा का वर्णन किया। आप भी
एक गाय गांव से निकल जंगल में दूर चली गई। तभी एक शेर की नजर उस पर पड़ी और वह शिकार के लिए दौड़ा। जान बचाने के लिए गाय भी भागने लगी। भागते-भागते गाय एक तालाब में घुस गई, जहां भारी दलदल था। गाय तालाब के बीच में जाकर फंस गई। पीछे-पीछे तालाब में घुसा शेर भी फंस गया।
शेर ने पूरी ताकत लगा दी, लेकिन वो नहीं निकल पा रहा था। आगे गाय फंसी थी और पीछे शेर। दलदल इतना गहरा था कि दोनों नहीं निकले, तो मौत तय थी।
शेर को मौत का डर सता रहा था। वह थर-थर कांप रहा था, लेकिन गाय बिल्कुल शांत और निश्चिंत भाव में खड़ी थी। घंटों ऐसे ही फंसे रहने के बाद शेर ने गाय से पूछा कि तूझे मौत का डर क्यों नहीं सता रहा है।
इस पर गाय ने जवाब दिया, ‘तू है लावारिस पशु, लेकिन मेरा एक मालिक है। मुझे पता है कि शाम को घर नहीं पहुचूंगी तो मालिक मुझे खोजेगा और खोजता-खोजता यहां तक आएगा और मुझे बचा कर ले जाएगा।’