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चारों तरफ पानी था, लगा जैसे प्रलय आया हो ग्वालियर में नंदू का डेरा बस्ती के लोग बोले- बच्चों को लेकर भागे, जैसे-तैसे जान बची

स दिन बाढ़ आई उस दिन ऐसा लगा जैसे प्रलय आया हो। चारों तरफ पानी ही पानी था। मैं तो खुद को मरा मान चुका था, लगभग बेहोशी की हालत में था। ऐसा लग रहा था कि मैं हवा में हूं। तभी कुछ लोग आए और मुझे नाव में बैठाकर यहां से ले गए। मेरा तो दूसरा जन्म हुआ है।’

ये आपबीती 68 साल के बुजुर्ग सुरेश चतुर्वेदी की है। वह ग्वालियर जिले की डबरा तहसील के नंदू का डेरा बस्ती में रहते हैं। भारी बारिश के कारण तीन दिन पहले ये इलाका पूरी तरह से डूब गया था। एसडीईआरएफ और प्रशासन ने 400 से ज्यादा लोगों को रेस्क्यू कर उनकी जान बचाई।

दैनिक भास्कर की टीम 72 घंटे बाद नंदू का डेरा बस्ती पहुंची तो देखा कि यहां अब भी जिंदगी पटरी पर नहीं लौटी है। घरों में पानी भरा है और सड़क पर कमर से ऊपर तक पानी है। जो लोग अपने घरों को देखने लौट रहे हैं, उन्हें केवल बरबादी ही नजर आ रही है।

पानी की वजह से लोगों की गृहस्थी उजड़ चुकी है। घर का सामान पूरी तरह से भीग गया है। जो लोग घरों तक नहीं पहुंचे, वे अब भी रिश्तेदारों के घर आसरा लिए हुए हैं। समाजसेवी संगठन लोगों के घर तक राशन और खाना पहुंचाने का काम कर रहे हैं। क्या हैं नंदू का डेरा बस्ती के हालात? पढ़िए रिपोर्ट…  

1. हम बच्चों को लेकर भागे, भैंस नहीं ले जा सके नंदू का डेरा बस्ती में रहने वाली जया देवी तीन दिन बाद घर लौटीं। घर के भीतर देखा तो सारे कमरों में पानी भरा हुआ था। सामान भीग चुका है। जया कहती हैं, मेरा साल भर का अनाज सड़ गया। उनसे पूछा कि उस दिन बाढ़ कैसे आई तो बोलीं- ‘बारिश तेज हो रही थी, पानी धीरे धीरे बढ़ रहा था। हमें लगा कि सड़क तक ही रहेगा, लेकिन पानी धीरे-धीरे ऊपर चढ़ने लगा। जैसे ही पानी बढ़ा अफरातफरी मच गई। मैं और बहू बच्चों के लेकर भागे। जल्दबाजी में हम अपनी भैंस को यहीं छोड़ गए। अब वापस लौटी हूं तो देखा कि भैंस मर चुकी है। 10 दिन पहले ही उसने बच्चे को जन्म दिया था। पास ही खड़ी बहू रचना ने कहा कि घर में कुछ नहीं बचा है। सारा सामान खराब हो चुका है।’  

2. मैं तो खुद को मरा हुआ मान चुका था, जैसे-तैसे जान बची 68 साल के बुजुर्ग सुरेश चतुर्वेदी ने कहा, ‘जिस दिन बाढ़ आई उस दिन विकट स्थिति थी। ऐसी स्थिति थी कि मैं खुद को मरा मान चुका था। मैं लगभग बेहोशी की हालत में चला गया था। ऐसा लग रहा था हवा में हूं। कुछ लोग आए और मुझे नाव में बैठा कर बचा ले गए। मेरा दूसरा जन्म हुआ है। घर में कुछ नहीं बचा है, सब तबाह हो चुका है। पैसे, सामान सब गया। बस घर का ढांचा खड़ा है।​​​​​​ जिंदगी में मैंने पहली बार ऐसी बाढ़ देखी।’

पड़ोस में रहने वाली लीला यादव ने कहा, ‘बाढ़ में सब कुछ बरबाद हो गया। ये देखकर बस जान ही नहीं निकल रही है। पूरा घर डूब गया था। अब लौटे तो देख रहे हैं कि गृहस्थी का सारा सामान बरबाद हो गया है। स्थिति बेहद खराब हो चुकी है। दिमाग काम नहीं कर रहा। हम कहां जाएंगे, क्या खाएंगे?’ 

3. घर लौटे तो केवल लड्डू गोपाल ही मिले आरती शर्मा यहां किराए से रहती हैं। आरती कहती हैं, ‘शुरुआत में पानी घर की दहलीज तक आया तो लगा बस इतना ही रहेगा। मगर पानी लगातार बढ़ता गया। हमें घर और सारा सामान छोड़ कर भागना पड़ा। अब तीन दिन बाद लौटी हूं, तो सिर्फ मेरे लड्डू गोपाल ही मुझे मिले हैं। बाकी सब तहस-नहस हो गया। कुछ भी नहीं बचा। मैंने EMI पर फ्रिज लिया था, वो भी उल्टा पड़ा है। खाने-पीने, ओढ़ने-बिछाने तक का सामान नहीं बचा।’

इसी बस्ती में रहने वाले अभय गौड़ की रोजी रोटी का जरिया ई-रिक्शा भी बाढ़ की चपेट में आ गया है। वे कहते हैं, ‘किचन से लेकर घर का सारा सामान बरबाद हो गया। बच्चों के बर्थ सर्टिफिकेट से लेकर तमाम जरूरी डॉक्यूमेंट्स का पता नहीं कि वो कहां हैं। बस यही चाहते हैं कि हमें इसका मुआवजा मिले।’

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