क्या हम लंकाधिपति रावण का पुतला जलाने की पात्रता रखते हैं और क्या हम इसके अधिकारी हैं ?…गोपाल भार्गव की पोस्ट फिर सुर्खियों में…
भोपाल।मध्य प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री और सबसे सीनियर विधायक गोपाल भार्गव के सोशल मीडिया पर की एक पोस्ट ने सियासी हलचल को हवा देने का काम किया है।इस पोस्ट में रावण, दशहरा से लेकर मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म जैसे कई अहम मुद्दों को उठाया है।जिसके कई मायने हैं सियासी गलियारे में निकले जा रहे है।
वरिष्ठ नेता के साथ ही प्रदेश सरकार में पूर्व मंत्री रहे गोपाल भार्गव सागर जिले की रहली विधानसभा से रिकॉर्ड 9वीं बार लगातार विधानसभा का चुनाव जीते हैं। लेकिन इस सरकार में गोपाल भार्गव को अनदेखा किया गया। जिससे वह नाराजगी जता चुके है और नाराजगी के चलते अपने बयानों से सुर्खियों में रहते हैं।इस बार फिर अपनी पोस्ट से सुर्खियों में है।विधायक गोपाल भार्गव ने अपनी पोस्ट में लिखा ‘नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है, जहां गांव से लेकर शहरों तक हम माता के साथ-साथ कन्याओं को भी पूजन करते हैं।पांच दिन बाद ही दशहरा भी आएगा, जहां गांव से लेकर शहरों तक सबस जगह रावण का पुतला दहन किया जाएगा। अखबारों में एक तरफ दुर्गा पूजन और कन्या पूजन की खबरें होती है, लेकिन उसी अखबार में दूसरी तरफ मासूम और अबोध बच्चियों के साथ दुष्कृत्य और उनकी हत्या करने की खबरें भी लगातार पढ़ने और देखने में आती हैं। मैंने यह भी गौर किया है कि दुनिया के किसी भी देश में मुझे ऐसे समाचार पढ़ने या देखने नहीं मिले। इसलिए नवरात्रि के महापर्व में हमें अब यह विचार करना होगा कि क्या हम लंकाधिपति रावण का पुतला जलाने की पात्रता रखते हैं? और क्या हम इसके अधिकारी हैं?’
अपनी पोस्ट में गोपाल भार्गव ने लिखा ‘विजयादशमी को हम बुराई पर अच्छाई की विजय का त्योहार मानते हैं, रावण ने माता सीता का हरण किया था, लेकिन असहाय स्थिति में भी उनका स्पर्श करने का प्रयास नहीं किया।उन्होंने इस बात को रामायण की चौपाई के माध्यम से रखा।चौपाई ‘तेहि अवसर रावनु तहं आवा। संग नारि बहु किएं बनावा’ जिसका अर्थ होता है कि रावण जब सीता माता के दर्शन करने जाता था, तब लोक लाज के कारण अपनी पत्नी और परिवार को भी साथ ले जाता था। ‘रामायणों में उल्लेख है कि रावण महाज्ञानी, महा तपस्वी , महान साधक और शिवभक्त भू लोक में नहीं हुआ, जिसने अपने शीश काटकर भगवान शंकर के श्री चरणों में अर्पित कर दिए थे। लेकिन ऐसे लोग जिन्हें न किसी विद्या का ज्ञान है, जिन्हें शिव स्तुति की एक लाइन और रुद्राष्टक, शिव तांडव स्तोत्र का एक श्लोक तक नहीं आता, जिनका चरित्र उनका मोहल्ला ही नहीं बल्कि पूरा गांव जानता है, उनके रावण दहन करने का क्या औचित्य है ? यह तो सिर्फ बच्चों के मनोरंजन के लिए आतिशबाजी दिखाने का मनोरंजन बनकर रह गया है’।गोपाल भार्गव ने लिखा ‘हमें इस बात का प्रण लेना होगा कि हमें खुद के अंदर बैठा रावण मारना होगा. क्योंकि यह अंदर का रावण मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म जैसी घटनाओं के लिए प्रेरित करता है। गौर करने लायक एक बात यह भी है कि जब से ऐसे दुष्कृत्य करने वालों को मृत्युदंड और कड़ी सजाओं के कानून बने हैं, तब से ऐसी घटनाएं और अधिक देखने में आ रही हैं। नवरात्रि में हम सभी भारतीयों को यह आत्ममंथन का विषय है।’