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पूर्वजों के दान पर वंशजों की गिद्ध नजर

देहरादून। पूर्वजों ने इस पीड़ा के साथ अपनी जमीनें स्कूलों को दान की थी कि उनके इलाके बच्चे शिक्षित हों। इलाका शिक्षित हो गया और उनकी संततियां भी। लेकिन तीसरी-चौथी पीढ़ी में आकर उनके वंशज अब पुरखों की दान की गई इन्हीं जमीनों को वापस हड़पना चाह रहे हैं।
वजह है इन बुजुर्गों द्वारा किए गए दाननामों की रजिस्ट्री न होना और राज्य में जमीनों के दामों में आया भारी उछाल, विशेषकर मैदानी जिलों में।
राज्य में 591 माध्यमिक विद्यालयों और प्रारंभिक शिक्षा विभाग के 4300 विद्यालयों के नाम सरकार से आवंटित जमीन नहीं है। इनका निर्माण स्कूल स्थापना करते समय दानवीरों द्वारा दी गई जमीन पर किया गया है। इन स्कूलों के पास दानी सज्जन द्वारा दिया गया दाननामा तो है, लेकिन उन्हें रजिस्टर्ड नहीं किया गया है।
पिछले कुछ वर्षों में राज्य के कई भागों में जमीनों के दामों में तेजी से उछाल आया है। जमीनों के दामों में आए उछाल से इन दानवीरों के वंशजों का ईमान भी डोलने लगा है और वे बाप-दादाओं की शिक्षण संस्थानों को दान की गई जमीनों को फिर हथिया कर बेचने की फिराक में हैं। कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें भूमि स्कूल के लिए दान में दिए जाने के बाद अब नई पीढ़ी इस पर अपना हक जता रही है और इन जमीनों पर कब्जा करने लगी है।
राज्य मुख्यालय में सचिवालय के ठीक सामने एक स्कूल चल रहा था। करीब 200 करोड़ रुपये कीमत की इस जमीन को कानूनी दांव-पेंच में उलझाने के बाद अंततः स्कूल ही अन्यत्र शिफ्ट करवा दिया गया।
इन प्रयासों के बाद अब शिक्षा विभाग भी हरकत में आ गया है। शिक्षा विभाग के अनुसार 4891 स्कूलों को जमीनें दान में मिली थी, जो अब तक उनके नाम दर्ज नहीं है। इसे देखते हुए शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने विभागीय अधिकारियों को स्कूल की भूमि अतिक्रमण हटाने और जमीनों को स्कूलों के नाम रजिस्ट्री के निर्देश दिए हैं। शिक्षा मंत्री का कहना। कि हर विद्यालय की भूमि उसके नाम दर्ज होनी चाहिए। साथ ही यह भी कहा है कि उन विद्यालय को समग्र शिक्षा के तहत फंड नहीं दिया जाएगा, जिनके नाम जमीन नहीं होगी।
इस पूरे प्रकरण को लेकर शिक्षा विभाग भी सवालों के घेरे में है। सवाल यह है कि आखिर इनते सालों तक शिक्षा विभाग चुप्पी क्यों साधे रहा।

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