Fri. Nov 15th, 2024

राजनीति देवरानी-जेठानी की जंग

एक जिला जो कोयले के लिए जाना जाता है… एक जिला जिसे भारत की कोयला राजधानी कहा जाता है…एक जिला जिसकी अर्थव्यस्था कोयले से चलती है…1950 के दशक में एक युवा उत्तर प्रदेश के बलिया से इसी कोयले से अपनी किस्मत बदलने की उम्मीद में यहां आता है। बीतते वक्त के साथ ये कोयला उस युवा की किस्मत बदल देता है…सिर्फ किस्मत नहीं बदलता बल्कि उसे इस जिले की राजनीति का पर्याय बना देता है। दशकों तक इस चेहरे की धमक यहां की राजनीति में रहती है। अचानक वो चेहरा दुनिया छोड़कर चला जाता है। लेकिन उसकी धमक ऐसी होती है यहां से उसके परिवार को शुरुआती नाकामी के बाद फिर से सफलता मिलने लगती है। ये सफलता परिवार में कलह भी लेकर आती है। कलह भी ऐसी कि वो खूनी जंग में बदल जाती है। अब इसी परिवार के चेहरों के बीच जिले की एक विधानसभा सीट पर वर्चस्व की लड़ाई है। वो सीट जो इस पूरे किस्से की गवाही देती है, वो सीट है झारखंड के धनबाद जिले की झरिया विधानसभा .

इस सीट के इतिहास की… बात सूर्यदेव सिंह की, उनके परिवार और परिवार की अदावत की… बात होगी उस महिला की भी जिसने सूर्यदेव सिंह परिवार की चुनौती दी… चुनौती ही नहीं दी बल्कि उनके भाई को हराकर लालू प्रसाद यादव सरकार में मंत्री भी बनीं.झरिया विधानसभा सीट झारखंड के कोयलांचल में धनबाद जिले में पड़ती है। साल 1967 के बिहार विधानसभा चुनाव में यह सीट अस्तिव में आई। यहां की आधी आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से  कोयला खनन पर निर्भर है। कोयला खनन झरिया की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाता है। इस बार यहां 20 नवंबर को दूसरे चरण में मतदान है। मतदाताओं की बात की जाए तो इस सीट पर राजपूत और मुस्लिम मतदाताओं का वर्चस्व है। इसके साथ ओबीसी वोटर भी इस सीट पर बड़ा प्रभाव डालते हैं। झरिया सीट पर हुए पहले चुनाव की बात करें तो 1967 के इस चुनाव में झरिया सीट पर कांग्रेस को जीत मिली थी। यहां से कांग्रेस के एसआर प्रसाद जीते। उन्होंने जन क्रांति दल के एसके राय को हराया। दो साल बाद बिहार में नए सिरे चुनाव हुए। 1969 के इन चुनावों में नतीजे पलट गए। पिछले चुनाव में हारने वाले एसके राय इस बार जीतने में सफल रहे। हालांकि, इस बार वो भारतीय क्रांति दल के टिकट पर मैदान में थे। उन्होंने कांग्रेस के शेदराज प्रसाद को हरा दिया। 1972 में एक बार फिर एसके राय यानी शिव कुमार राय को जीत मिली। इस बार राय भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज करने में सफल रहे थे।
अब देवरानी-जेठानी आमने-सामने
2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने नीरज सिंह की विधवा पत्नी पूर्णिमा नीरज सिंह को टिकट दिया। वहीं, भाजपा ने उनकी देवरानी और नीरज की हत्या के आरोपी विधायक संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया। नतीजा पूर्णिमा सिंह के पक्ष में रहा और उन्होंने यह चुनाव 12,054 वोट से जीत लिया। 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद इस चुनाव में भी देवरानी-जेठानी पूर्णिमा सिंह और रागिनी सिंह एक बार फिर एक दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं। वर्तमान में पूर्णिमा सिंह झरिया से कांग्रेस की विधायक हैं। इस चुनाव में वैसे तो झरिया सीट पर कुल 11 उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला पूर्णिमा और रागनी के बीच ही माना जा रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *