मप्र में रिवर-सेंड का कारोबार पर लग सकती है रोक, मुख्यमंत्री और एनजीटी दोनों इस मामले में एकमत, एम-सेंड के व्यापार को बढ़ाया जाएगा आगे
मध्यप्रदेश में मोहन सरकार ने फैसला कर लिया है कि नदियों से रेत उत्खनन पर रोक लगाई जाए तथा एम-सेंड को बढ़ावा दिया जाए। डॉ. मोहन यादव के इस विजन से रेत माफियाओं का बाजार बंद हो या ना हो, लेकिन इस नीति से 50 प्रतिशत नदियों से रेत का कारोबार थम जाएगा। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री ने खनिज विभाग को अपने पास इसलिए रखा है ताकि रेत माफियाओं के चुंगल से मप्र को मुक्त किया जाए। डॉ. यादव ने एम-सेंड के व्यापार को बढ़ावा देने के लिए खनिज विभाग के प्रमुख सचिव उमाकांत उमराव को स्पष्ट निर्देश दे दिए हैं कि वे एम-सेंड के मामले में प्राथमिकताओं के आधार पर काम करें। बता दें कि, रेत के कारोबार से मप्र में मात्र 298 करोड़ का रेवेन्यू प्राप्त होता था उसे अधिक लाभदायक बनाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मप्र के उन सभी जिलों की रेत नीलामी का निर्णय लिया, जहां नदियों से रेत उत्खनन किया जाता है। कमलनाथ के इस निर्णय से पहली बार रेत के व्यापार में मप्र सरकार को 298 करोड़ की बजाय 1400 करोड़ के राजस्व की उम्मीद जगी थी, लेकिन कमलनाथ की 15 महीनों की सरकार के बाद जैसे ही चौथी बार शिवराज मुख्यमंत्री बने, तो वह रेत के कारोबार को फिर से पुराने ढर्रे पर ले आए और रेत माफियाओं का कारोबार वैसा ही हो गया जैसा पहले था। डॉ. यादव ने आते ही अपनी समीक्षा बैठक में नदियों से रेत के कारोबार को कम करने तथा एम-सेंड को बढ़ावा देने की नीति पर जोर डाला। विभाग के प्रमुख सचिव उमाकांत उमराव के अनुसार नदियों पर रेत खनन के प्रभाव को कम करने और पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से मोहन सरकार एम-सेंड को बढ़ावा दे रही है। बता दें कि, एम-सेंड पत्थरों को तोड़कर निर्मित रेत होती है जो नदी की रेत का एक पर्यावरण मित्र विकल्प है। समझा जाता है कि एनजीटी मोहन सरकार की इस नीति से खुले रूप से सहमत है। एनजीटी के सूत्रों का कहना है कि, एम-सेंड की नीति से जहां एक ओर नदियों में बड़ी-बड़ी मशीनें अवैध रूप से रेत का उत्खनन करती हैं और पर्यावरण के लिए जरूरी बायो- डायवर्सिटी बिगाडने वाली प्रवृत्तियों पर रोक लगेगी। मतलब मोहन सरकार द्वारा नई नीति के अनुसार एम-सेंट प्लांट स्थापित करने पर सब्सिडी प्रदान करने का जो नियम बनेगा वह अत्यंत ही उत्साहवर्धक होगा। प्रमुख सचिव उमाकांत उमराव की मानें तो 10 करोड़ तक के प्लांट पर 40 प्रतिशत सब्सिडी और 50 करोड़ तक के प्लांट पर 35 प्रतिशत और 50 करोड़ से अधिक लागत के प्लांट पर उद्योग विकास का प्रावधान होने से इस क्षेत्र में पूंजी निवेश को बड़ा समर्थन मिल रहा है। समझा जाता है कि, एम-सेंड पर रायल्टी दर कम होने से उपभोक्ताओं के लिए यह सस्ती होगी और निर्माण लागत में कमी आएगी। इसलिए पहले चरण में सरकार ने रेत नीति में परिवर्तन करते हुए खदानों के ठेकों को पारदर्शी बनाने का फैसला कर लिया है और अब उसकी समय-सीमा में भी परिवर्तन किया जा सकता है। इस विशेष रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह है कि मप्र में पहली बार किसी सरकार ने रेत के व्यापार में मप्र की होने वाली बदनामियों को रोकने के लिए रिवर-सेंड पर आंशिक प्रतिबंध लगाते हुए एम-सेंड के व्यापार को मैदान में उतार दिया है ऐसा माना जाए तो चौंकिएगा मत और चौंकिएगा तब जब एनजीटी यह कह दें कि मप्र में रिवरसेंड पर पूर्णत: प्रतिबंध होना चाहिए।