नागा साधुओं को नही दी जाती है मुखाग्नि, जीवित में ही पिंडदान कर चुके होते हैं संन्यासी कैसे करते हैं अंतिम संस्कार
नई दिल्ली. प्रयागराज के महाकुंभ 2025 में आस्था का मेला सज चुका है और प्रतिदिन करोड़ों की तादाद में श्रद्धालु आस्था के संगम में डुबकी लगा रहे हैं। सबसे पहले मंगलवार को अखाड़ों ने अमृत स्नान में हिस्सा लिया और इसके बाद साधु-संतों से लेकर आमजन संगम में पवित्र स्नान कर चुके हैं। महाकुंभ में नागा साधुओं का भी जमावड़ा देखा गया है और पे/ावाई से लेकर पवित्र स्नान में नागा साधु बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। नागासाधुओं के बारे में एक रहस्य यह भी है। आखिर मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है।
जीवित रहते करते हैं पिंडदान
नागा साधु जीवित रहते ही स्वयं अपना पिंडदान और अंतिम संस्कार कर चुके है। ऐसे में उनकी अत्येष्टि को लेकर भी कई सवाल होते आये हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार जन्म से लेकर मृत्यु तक संस्कारों का पालन किया जाता है। इसमें अंतिम संस्कार भी प्रमुख है। आम लोगों की अंत्येष्टि दाह संस्कार कर की जाती है। लेकिन नागा साधु तो स्वयं ही अपना पिंडदान कर चुके होते हैं। उनका अंतिम संस्कार कैसे होता है।
जूना अखाड़ा के कोतवाल अखंडानंद महाराज बताते हैं कि मृत्यु के बाद नागा साधु की समाधि लगाई जाती है। वह चाहे जल समाधि हो या फिर भू-समाधि उनका दाह संस्कार नहीं किया जाता है। अखंडानंद महाराज ने बताया है कि नागा की चिता को आग नहीं दी जाती और ऐसा करने पर दबहुत दोष लगता है। इसकी वजह बताते हुए महाराज ने कहा है कि नागा साधु पहले ही अपने जीवन को नष्ट कर चुका है। पिंडदान कर चुका होता है। तब जाकर ही वह नागा साधु बन पाता है।
अंतिम इच्छा का भी होता है पालन
जल समाधि और भू समाधि की परंपरा
अखंडानंद महाराज ने बताया है कि आम व्यक्ति से अलग नागा साधु बनने के बाद अंतिम संस्कार में पिंडदान और दाह संस्कार की प्रक्रिया लागू नहीं होती। इसी कारण से नागा को अग्नि को समर्पित न करके, जल या फिर भू-समाधि दी जाती है। संन्यासी स्वामी हरप्रसाद ने बताया है कि नागा साधु जीवित रहते ही अपना तन और मन परमात्मा को समर्पित कर चुका होता है और साथ ही पिंडदान कर चुके होते हैं। ऐसे में उनके शव को अग्नि नहीं दी जाती है। पहले नागा साधुओं को जल समाधि देने का चलन था। लेकिन नदियों के प्रदूषण को कम करने के मकसद से अब जल समाधि की जगह नागाओं को सिद्ध योग मुद्रा में बैठाकर भू-समाधि दी जाती है। इसकी वजह है कि भू-समाधि पाकर नागा को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह जीवन मरण के चक्र से मुक्ति पा जाते है। इस समाधि से पहले हिन्दू धर्म के अनुसार उनके शव को स्नान कराया जाता है और फिर मंत्रोच्चण के साथ भू-समाधि दे दी जाती है।
मृत्यु के बाद नागा साधु के शव पर भगवा वस्त्र डाले जाते हैं और भस्म लगाया जाता है जो उनकी आध्यात्मिक साधना का प्रतीक है उनके मुंह में गंगाजल और तुलसी की पंत्तियां भी राखी जाती है। इसके बाद ही भू-समाधि दी जाती है। साथ ही उस समाधि स्थल पर एक सनातनी निशान बना दिया जाता है। ताकि कोई उस जगह को ंगंदा न कर सके। नागा साधुओं को धर्म रक्षक भी है। यही वजह है कि एक योद्धा की तरह पूरे मान-सम्मान के साथ उनको अंतिम विदाई दी जाती है।
अंतिम इच्छा का भी होता है पालन
नागा साधुओं की भू-समाधि के दौरान एक गड्ढा खोदा जाता, मृत संत के पद के मुताबिक उस गड्ढे की गहराई और आकार तय होता है. इसके बाद मंत्रों के उच्चारण और पूजा-पाठ के साथ नागा को बैठाकर मिट्टी से ढक दिया जाता है. अगर नागा साधु जल समाधि की आखिरी इच्छा जाहिर करके जाता है तो उसे किसी पवित्र नदी में समर्पित भी किया जा सकता है. कई बार अखाड़े की परंपरा के अनुसार भी नागा साधु का अंतिम संस्कार किया जाता है.नागा परंपरा के अनुसार मान्यता है कि उनका शरीर पंच महाभूत पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर बना है और मृत्यु के बाद इन ही तत्वों को शरीर समाहित किया जाना चाहिए. ऐसे में नागा साधुओं की मृत्यु के बाद उन्हें भू-समाधि या जल समाधि देने की परंपरा है।