मप्र पुलिस का बजट 10,000 करोड़ पहुंचा 8,500 करोड़ पगार में हो जाते हैं खर्च, मात्र 15 प्रतिशत संसाधनों के लिए बचता है, फिर भी कानून और व्यवस्था चाक-चौबंद
मध्यप्रदेश में डॉ. मोहन यादव की सरकार के सामने कानून और व्यवस्था जितनी बड़ी चुनौती नहीं है, उससे ज्यादा बड़ी चुनौती है कि मप्र के पुलिस बल को तनाव मुक्त रखा जाये। मतलब यह लिखना गलत नहीं होगा कि सन् 2000 में मप्र जब अलग राज्य बना तब मप्र पुलिस का बजट मात्र 1200 करोड़ हुआ करता था और आज 2025 में मप्र पुलिस का बजट 10,000 करोड़ से ऊपर है, इसके बावजूद पुलिस बल के पास वे समस्त साधन आज भी उपलब्ध नहीं हैं, जिनकी अत्यंत आवश्यकता अपराधों के नियंत्रण के लिए जरूरी है। जानकारों का कहना है कि मप्र के नये पुलिस महानिदेशक कैलाश मकवाणा ने जब से जिम्मेदारी संभाली है, तब से उनके सामने पुलिस बल में और पुलिस की कार्यशैली में बदलाव करने का जुनून हावी तो गया है, परन्तु उनकी मजबूरी है कि वे प्रयाप्त वित्तीय बजट को अच्छी पुलिसिंग के लिए कैसे जुटाएं। समझा जाता है कि कैलाश मकवाणा के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि 10,000 करोड़ के बजट में जब उन्हें 8500 करोड़ रूपये तन्खा बांटने में ही खर्च करना पड़ता है, तो संसाधनों के लिए पैसे कहां से आये। आप यह जानकर चौंक जायेंगे कि मप्र में 15000 हजार पुलिस कांस्टेबल के पद रिक्त हैं, जिसमें 7000 पुलिस आरक्षकों की भर्ती के लिए चयन प्रक्रिया पूरी हो गई है, लेकिन ज्वाइनिंग की स्थिति अभी भी गंभीर है। यह बात अलग है कि पुलिस आरक्षकों और प्रधान आरक्षकों को प्रभारी एएसआई बनाकर सरकार ने उनका नैतिक बल तो बढ़ाया है, लेकिन आज भी पुलिस बल के पास मध्यप्रदेश में वे सुविधायें उपलब्ध नहीं हैं, जिसकी पुलिस को जरूरत है और यही कारण है कि पुलिस और आम जनता के बीच विश्वास की कमी अभी भी बनी हुई है, जिससे सूचना का आदान-प्रदान सीमित रहता है और अपराधों की रिपोर्टिंग में कमी आती है। परन्तु मध्यप्रदेश पुलिस की कार्यशैली में 2000 से 2025 तक कई बदलाव भी आए हैं, जिनमें तकनीकी उन्नति, आधुनिक संसाधनों का उपयोग और पुलिसिंग के तरीकों में सुधार शामिल हैं। हालांकि, कुछ बुनियादी समस्याएं अब भी बनी हुई हैं, मतलब जिन गाडिय़ों से अपराधों को नियंत्रित किया जाता है वे 4-5 किमी चल चुकी हैं और जिस रफ्तार से अपराधी भागता है उसे पकडऩे के लिए इन गाडिय़ों की रफ्तार अपराधियों की रफ्तार से आधी है। लेकिन सरकार के पास वाहनों को बदलने के लिए बजट का अभाव है। और तो और पुलिस बल के ड्रेस, जुते और रखरखाव के खर्चों में महंगाई से तुलना की जाये, तो महंगाई 100 प्रतिशत बढ़ी और सरकार ने पुलिस बल के लिए उपरोक्त मद में मात्र 15 प्रतिशत का इजाफा किया। फिर भी मप्र के जांबाज पुलिस वाले कानून और व्यवस्था को चाक-चौबंद रख रहे हैं और समय के साथ पहले जहां पुलिस मैनुअल रिकॉर्डिंग और पारंपरिक तरीकों पर निर्भर थी, अब डिजिटल सिस्टम जैसे सीसीटीवी सर्विलांस, क्राइम ट्रैकिंग नेटवर्क सिस्टम और ऑनलाइन एफआईआर जैसी सुविधाओं का उपयोग हो रहा है और तो और ड्रोन, बॉडी कैमरा, साइबर क्राइम यूनिट्स और मोबाइल ऐप्स के जरिए निगरानी और अपराध रोकथाम के प्रयास तेज हुए हैं, लेकिन नये पुलिस महानिदेशक ने 2000 की तुलना में साइबर अपराधों के प्रभाव को 2025 तक इंटरनेट के बढ़ते उपयोग के कारण ऑनलाइन धोखाधड़ी, हैकिंग और डिजिटल अपराधों से निपटने के लिए विशेष साइबर सेल माध्यम से नियंत्रित करने का अद्भुत काम किया है। पुलिस मुख्यालय से मिली जानकारी के अनुसार 2000 तक पुलिसिंग में जनता के साथ संवाद कम होता था, लेकिन अब जन संवाद, दोस्ती अभियान, और महिला हेल्पलाइन जैसी पहल से जनता के साथ बेहतर तालमेल बैठाने पर जोर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि आधुनिक तकनीक और उपकरणों का प्रशिक्षण पुलिस कर्मियों को दिया जा रहा है, जैसे कि फॉरेंसिक साइंस, आतंकरोधी तकनीक, और कम्युनिकेशन स्किल्स पर फोकस बना हुआ है। इस विशेष रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह है कि मप्र में 2000 के मुकाबले महिला सुरक्षा को लेकर अधिक प्रयास किए जा रहे हैं, जैसे कि शक्ति मोबाइल एप, 1090 हेल्पलाइन, और महिला पुलिस पेट्रोलिंग यूनिट्स का गठन किया जा चुका है। लेकिन भीड़ नियंत्रण और सांप्रदायिक तनाव के मामलों में आधुनिक रणनीतियों को अपनाया गया है, और पुलिस को भीड़ प्रबंधन के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया गया है। इन सबके बावजूद जनसंख्या वृद्धि के मुकाबले पुलिस बल की संख्या में अपेक्षित वृद्धि नहीं हुई है, जिससे कानून व्यवस्था बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो रहा है। कई थानों में अब भी संसाधनों की कमी है, जैसे कि वाहनों की अनुपलब्धता, खराब संचार प्रणाली, और पुराने उपकरण के कारण बेहतर पुलिसिंग इंदौर और भोपाल शहर को छोड़कर बाकि मध्यप्रदेश अपेक्षाकृत कमजोर है। इसलिए मध्यप्रदेश पुलिस में 2000 से लेकर 2025 तक अपनी कार्यशैली में उल्लेखनीय सुधार तो किए गए हैं, विशेष रूप से तकनीक और महिला सुरक्षा के क्षेत्र में सुधार रेखांकित भी किया गया है, परन्तु कर्मचारियों की कमी, बुनियादी संसाधनों की जरूरत और भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं अभी भी बरकरार हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक सुधारों की जरूरत है, जिससे पुलिस व्यवस्था और अधिक प्रभावी हो सके, इस चिंता में मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मुख्य सचिव अनुराग जैन और मप्र के नये पुलिस महानिदेशक दोनों को निर्देश दिया है कि शीघ्र ही मप्र की पुलिस को अग्रणी राज्यों की श्रेणी में बेहतर काम करने वाले पुलिस के चेहरे के रूप में स्थापित किया जाये और इस दिशा पर संभवत: नये डीजीपी ने काम शुरू कर दिया है, ऐसा माना जाये, तो चौंकिएगा मत।