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भास्कर की जांच-क्षिप्रा का पानी आचमन लायक नहीं यहां लगातार स्नान से स्किन कैंसर का खतरा; इंदौर की गंदगी इसे मैला कर रही

उज्जैन में क्षिप्रा नदी का पानी आचमन लायक नहीं है। इस पानी में ऐसे तत्व हैं, जो इंसानों के साथ जलीय जीव-जंतुओं के लिए भी हानिकारक हैं। दैनिक भास्कर ने जब क्षिप्रा के पानी की वैज्ञानिक जांच कराई तो यह खुलासा हुआ है।

दरअसल, लोकसभा चुनाव के दौरान पिछले दिनों क्षिप्रा को लेकर राजनीति हुई थी। उज्जैन सीट से कांग्रेस प्रत्याशी महेश परमार ने क्षिप्रा में डुबकी लगाकर आरोप लगाए थे कि इस पवित्र नदी का पानी गंदा है। इसकी सफाई पर सरकार का ध्यान नहीं है। इसके बाद खुद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने क्षिप्रा में नहाकर इस आरोप का जवाब दिया था।

इसी घटनाक्रम के बाद दैनिक भास्कर ने क्षिप्रा के अलग-अलग घाटों के पानी की लैबोरेटरी में जांच कराई। दत्त आश्रम घाट और राम घाट के पानी की जांच रिपोर्ट चौंकाने वाली है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस पानी में लगातार स्नान से स्किन कैंसर होने का खतरा है।

भास्कर ने क्षिप्रा के पानी को लेकर दूसरे राज्यों से उज्जैन पहुंचे श्रद्धालुओं से भी बात की

उज्जैन के रामघाट पर सबसे ज्यादा श्रद्धालु पहुंचते हैं। रामघाट पर ही सारे कर्मकांड और विधि विधान संपन्न किए जाते हैं। श्रद्धालु पहले रामघाट पहुंचकर क्षिप्रा में स्नान करते हैं फिर महाकाल के दर्शन के लिए जाते हैं। ऐसे में रामघाट का पानी कितना साफ है इसके लिए भास्कर रिपोर्टर ने यहां से पानी का सैंपल लिया।

इस सैंपल की जांच भोपाल नगर निगम की वाटर टेस्टिंग लैबोरेटरी से कराई। लैबोरेटरी ने पानी के कलर, टेस्ट, गंध, पीएच वैल्यू, क्लोराइड की मात्रा, क्षारीयता, कैल्शियम की मात्रा, मैग्नीशियम की मात्रा, टर्बिडिटी यानी पानी कितना गंदा है, पानी की कठोरता, फ्री रेसिड्यूअल क्लोरीन की मात्रा, पानी की टीडीएस वैल्यू और कोलीफॉर्म जैसे 13 पैरामीटर की जांच की।

इन 13 पैरामीटर्स में से 6 पैरामीटर्स की वैल्यू सामान्य से ज्यादा मिली है। पर्यावरणविद् डॉ. सुभाष पांडे कहते हैं कि ये चिंताजनक स्थिति हैं। क्षिप्रा एक नदी है और नदी के पानी की रिपोर्ट ऐसी नहीं होती।

वे बताते हैं कि पानी में क्षारीयता, मैग्नीशियम, हार्डनेस, फ्री रेसिड्यूअल क्लोरीन, टर्बिडिटी और टीडीएस ज्यादा पाया गया है। इनमें से तीन पैरामीटर क्षारीयता, हार्डनेस और फ्री रेसिड्यूअल क्लोरीन की वैल्यू ज्यादा होना बेहद चिंता की बात है।

पानी में क्षारीयता ज्यादा होना : डॉ. पांडे कहते हैं कि इसका मतलब ये है कि पानी के भीतर गंदगी बढ़ रही है साथ ही नदी के ऊपर वायु प्रदूषण का भी प्रभाव है। कार्बनडाइऑक्साइड(CO2) का लेवल बढ़ा हुआ है। CO2 और कार्बोनेट्स मिलकर पानी की क्षारीयता को बढ़ा रहे हैं।

पानी की हार्डनेस वैल्यू ज्यादा होना: डॉ. पांडे के मुताबिक इसका मतलब ये है कि इस पानी से कपड़े धोने या नहाने पर साबुन का झाग ही नहीं बनेगा। बनेगा भी तो काफी देर बाद। नदी के पानी में हार्डनेस न के बराबर होती है। क्योंकि इसमें बारिश का पानी शामिल होता है। क्षिप्रा के पानी में हार्डनेस का मतलब ये है कि इसमें नदी का पानी ही नहीं है। ये हार्डनेस मैग्नीशियम की वजह से बढ़ी है।

पानी में फ्री रेसिड्यूअल क्लोरीन ज्यादा होना: डॉ. पांडे कहते हैं कि आजकल नदियों में नालों के जरिए सीवेज का पानी घुलता है। इस वजह से बैक्टीरिया होना लाजमी है। लेकिन, क्षिप्रा के पानी में बैक्टीरिया नहीं मिले ये हैरानी की बात है।

वे कहते हैं कि स्थानीय प्रशासन जरूर बैक्टीरिया खत्म करने के लिए फ्री रेसिड्यूअल क्लोरीन मिलाया होगा। ये क्लोरीन बेहद खतरनाक होता है। इसकी सीमित मात्रा का इस्तेमाल होता है। पानी में फ्री क्लोरीन ज्यादा होने से नाक, आंख, आंत, फेफड़े, कैंसर और स्किन डिजीज की संभावना होती है।

पानी में मछलियों के मरने की क्या वजह है? पर्यावरणविद् सुभाष पांडे कहते हैं कि इसके कई सारे कारण है। पानी में फ्री क्लोरीन की मात्रा ज्यादा होने से भी मछलियां मरी हो सकती है। वे कहते हैं कि क्षिप्रा का पानी मटमैला और गंदा है जिससे पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है।

सूर्य की किरणें भी पानी के भीतर नहीं जा सकती जिससे पानी साफ नहीं होता और मछलियों के मरने का कारण बनता है। टर्बिडिटी की मात्रा दोनों ही घाटों के पानी में ज्यादा है। इसका मतलब ये है कि ये जलीय जीवों के लिए खतरनाक है। गंदा पानी होने से मछलियों को उनका शिकार नहीं दिखता इसलिए वे मर जाती हैं।

श्रद्धालुओं ने कहा- बहुत ज्यादा गंदगी, स्नान का मन नहीं किया

भास्कर ने घाट पर आए श्रद्धालुओं से भी बात की तो सभी ने कहा कि नदी में गंदगी बहुत ज्यादा है। यूपी के फिरोजाबाद से आए सुनील कुमार बोले- मैं महाकाल के दर्शन करने आया था। घाट पर पहुंचा नदी में बहुत ज्यादा गंदगी है। सुबह मैंने यहां स्नान भी किया था।

उन्हीं के साथ खड़े विश्वंभर कुमार ने कहा, इसने तो स्नान कर लिया बदबू की वजह से मेरी तो अंदर से इच्छा ही नहीं हुई। केवल आस्था के चलते यहां डुबकी लगा ली। गुजरात से आए अजीत रावत बोले- स्नान कर अच्छा महसूस नहीं हुआ। गंदगी और बदबू के चलते लोगों को बीमारि

गौरव और अंजली दोनों दिल्ली से आए थे। उनसे जब क्षिप्रा के बारे में पूछा तो बोले- हमें यहां के पानी की इस हालत के बारे में पता नहीं था। हम तो बड़े उत्साह के साथ आए थे कि शिप्रा में स्नान करेंगे। लेकिन यहां के पानी की हालत बहुत खराब है।

पानी हरे कलर का दिख रहा है। गंदगी बहुत है। किनारे पर मछलियां मरी हैं। इससे पहले हम ओंकारेश्वर गए थे। वहां नर्मदा का पानी इसके उलट है। पानी एकदम साफ और शुद्ध है। गौरव के बगल में ही बैठी उज्जैन की स्थानीय महिला बोलीं- बाकी सब तो ठीक है मगर यहां साफ सफाई की जरूरत है। नदी के पानी पर ध्यान नहीं दिया जाता ।

यों का खतरा है।

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