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कैसी होगी ‘मोदी बजट’ की पहली चाय? कड़वे घूंट में दिखेगा अमृतकाल का विजन!

रूस यात्रा से लौटने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे पहली बैठक अर्थव्यवस्था के शीर्ष जानकार लोगों के साथ की है। 23 जुलाई को बजट पेश करने से पूर्व हुई इस सबसे महत्वपूर्ण बैठक में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और नीति आयोग के वाइस चेयरमैन सुमन बेरी के अलावा राव इंद्रजीत सिंह, मुख्य आर्थिक सलाहकार वीए नागेश्वरन और बैंकिंग क्षेत्र के प्रमुख लोग भी उपस्थित थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के शीर्ष अर्थशास्त्रियों की बैठक में सबके विचार सुने और कुछ बिंदुओं पर अपने महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की आर्थिक बेहतरी के लिए कड़े कदम उठाने के पक्षधर रहे हैं। वे लोगों को तात्कालिक लाभ वाली ‘मीठी गोली’ देने की बजाय दूरगामी बेहतरी के लिए ‘कड़वे काढ़े’ को बेहतर बताते रहे हैं।राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद सत्र की शुरुआत में ही इस बात का संकेत दिया था कि आने वाले बजट में देश के शताब्दी वर्ष तक की उपलब्धियों का खाका खींचा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं अपने इस तीसरे कार्यकाल में देश को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की बात कहते रहे हैं। वे आजादी के शताब्दी वर्ष यानी 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बनाने की बात भी करते रहे थे। ऐसे में माना यही जा रहा है कि केंद्र सरकार आज़ादी के 75वें वर्ष में देश को विकसित देश बनाने के लिए बजट में अहम कदमों की घोषणा की जा सकती है।

क्या होंगे उपाय? 
केंद्र सरकार ने अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए मूलभूत ढांचे में निवेश को अपना मूलमंत्र बना रखा है। रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने और प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र में मांग को बनाए रखने के लिए सरकार एक बार फिर मूलभूत ढांचे में निवेश को अपनी प्राथमिकता बनाए रख सकती है। इसके साथ ही विदेशी निवेश और निजी निवेशकों के द्वारा सौर ऊर्जा, वाहनों के निर्माण, मोबाइल उद्योग सहित प्रमुख क्षेत्रों में निवेश करवा कर वह देश की अर्थव्यवस्था को तेज गति देने की कोशिश कर सकती है। अहम क्षेत्रों में निवेश करने पर औद्योगिक इकाइयों को विशेष छूट दिए जाने का विकल्प भी आजमाया जा सकता है।

राजनीतिक स्थिति का असर
केंद्र सरकार की राजनीतिक स्थिति पिछली बार की तरह संसद में उतनी मजबूत नहीं रह गई है। अब तक अनुमान यही जताया जा रहा था कि बजट में कठोर कदम उठाने पर उसे सहयोगी दलों का दबाव झेलना पड़ सकता है। अगले डेढ़ साल के बीच भाजपा को छह प्रमुख राज्यों में विधानसभा चुनाव का सामना भी करना है। लेकिन सरकार से जुड़े सूत्रों का दावा है कि देश की अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए वह कड़े कदम उठाना जारी रखेगी।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट निर्माण की प्रक्रिया में अब तक लगभग हर क्षेत्रों के प्रमुख स्टेक होल्डर्स से मुलाकात कर चुकी हैं। कुछ प्रतिनिधियों ने आज की महंगाई के दौर से उपभोक्ताओं के हाथों में खर्च करने के लिए ज्यादा पैसा छोड़ने के उद्देश्य से आयकर सीमा बढाने की मांग की थी। लेकिन जिस तरह सरकार पर आर्थिक दबाव हैं, माना यही जा रहा है कि आयकर में छूट मिलने के कोई आसार नहीं हैं। हालांकि, बजट में गरीबों, किसानों, महिलाओं और युवाओं के लिए विशेष योजनाओं में खर्च बढ़ाया जा सकता है।

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