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कलेक्टर सोनिया मीना पर सख्त हुआ हाईकोर्ट, दो अधिकारियों से छीनी न्यायिक शक्तियां

जबलपुर हाई कोर्ट ने नर्मदापुरम की कलेक्टर सोनिया मीना को बिना महाधिवक्ता के माध्यम से सीधे पत्र लिखने के लिए नाराजगी जाहिर की है। साथ ही कोर्ट ने कलेक्टर को व्यक्तिगत उपस्थिति के लिए फरमान भी जारी किया है। जबलपुर हाई कोर्ट ने नर्मदापुरम की कलेक्टर सोनिया मीणा के उस व्यवहार पर आपत्ति जताई है, जिसमें उन्होंने उच्च न्यायालय में स्वयं उपस्थित न होने के लिए सीधे न्यायाधीश को पत्र लिखा था। साथ ही कोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि नर्मदापुरम के कलेक्टर के खिलाफ कार्रवाई करें और 30 अगस्त तक कार्रवाई की रिपोर्ट हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को सौंपे। जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने कहा कि कलेक्टर का सीधे कोर्ट को पत्र लिखना उचित नहीं है और यह न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुंचाने के समान है। कलेक्टर को प्रदेश के महाधिवक्ता के माध्यम से आवेदन प्रस्तुत करना चाहिए था। हाई कोर्ट ने नर्मदापुरम में जमीन से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान कलेक्टर सोनिया मीणा को उपस्थित होने के लिए कहा था, लेकिन कलेक्टर ने खुद कोर्ट में उपस्थित होने के बजाय एडीएम के माध्यम से सीधे हाई कोर्ट जज के नाम एक पत्र भेज दिया। दूसरी और राष्ट्रीय हिन्दी मेल के इस प्रतिनिधि से कलेक्टर सोनिया मीणा ने कहा कि, माननीय उच्च न्यायालय के किसी भी आदेश की अवमानना करने का उनका कोई भी इरादा नहीं था। उन्होंने कहा कि, नागद्वारी मेले की तैयारियों में व्यस्त होने के कारण वो कोर्ट में उपस्थित नहीं हो सकीं। उन्होंने बताया कि वे मेले की व्यवस्थाओं के लिए पचमढ़ी में मौजूद थीं। उन्होंने कहा कि माननीय न्यायालय के निर्देशों के अनुपालन में इसीलिए उन्होंने एडीएम और तहसीलदार को कोर्ट भेजा दिया था। उन्होंने आगे यह भी कहा कि, जिले के अंदर नामांतरण को लेकर हजारों प्रकरण एसडीएम और तहसीलदारों के द्वारा निपटाए जाते हैं, लेकिन इस प्रकरण में उच्च न्यायालय के निर्देश हैं उसका पालन सुनिश्चित कर दिया गया था। फिर भी यदि उच्च न्यायालय ने कलेक्टर की व्यक्तिगत उपस्थिति को लेकर नाराजगी जाहिर की है और न्यायालय में उपस्थित होने को कहा है तो इस मामले में उन्होंने उच्च न्यायालय से समय मांगने हेतु आवेदन भेज दिया है और जो भी तिथि निर्धारित होगी उसमें उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार वे न्यायालय में उपस्थित रहेंगी। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सिविल मामले से जुड़े प्रकरण में अनुचित आदेश जारी करने पर दो अधिकारियों की न्यायिक और मजिस्ट्रियल शक्तियां वापस लेने के आदेश दिया है। जस्टिस जीएस अहलूवालिया की एकलपीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार, पक्षकारों के अधिकारों को उन अधिकारियों की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता, जो मामले को सही से समझने की स्थिति में नहीं हैं। इस संदर्भ में हाई कोर्ट ने कलेक्टर नर्मदापुरम को निर्देश दिया है कि एक वर्ष के लिए सिवनी मालवा के एडिशनल कलेक्टर देवेंद्र कुमार सिंह और तहसीलदार राकेश खजूरिया की सभी अर्ध-न्यायिक और मजिस्ट्रियल शक्तियां तुरंत वापस लें। कोर्ट ने दोनों अधिकारियों को छह महीने के लिए प्रशिक्षण के लिए भेजने के निर्देश भी दिए। कोर्ट ने कहा कि प्रशिक्षण पूरा होने के बाद दोनों अधिकारी एक वरिष्ठ अधिकारी के निर्देशन में काम करेंगे, जो उनकी अर्ध-न्यायिक और मजिस्ट्रियल मामलों से निपटने की क्षमता का परीक्षण करेगा। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद यदि वरिष्ठ अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अधिकारियों ने मामलों को प्रभावी तरीके से सुलझाने की दक्षता हासिल कर ली है तो ही उनकी शक्तियां बहाल की जाएंगी। यह मामला नर्मदापुरम में प्रदीप अग्रवाल और नितिन अग्रवाल के बीच जमीन विवाद से संबंधित है। प्रदीप अग्रवाल ने विवाद सुलझाने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने नामांतरण की प्रक्रिया नए सिरे से करने का आदेश दिया था, लेकिन जब मामला नर्मदापुरम वापस गया, तो तहसीलदार ने नामांतरण के बजाय नितिन अग्रवाल के बंटवारे के आवेदन को अभिलेख में लेकर प्रक्रिया शुरू कर दी, जो हाई कोर्ट के आदेश का उल्लंघन था। जिसके खिलाफ प्रदीप अग्रवाल ने अपर कलेक्टर के पास रिवीजन अर्जी दायर की, जिसे अपर कलेक्टर ने भी तहसीलदार की कार्रवाई को सही ठहराया। इसके बाद मामला दोबारा हाई कोर्ट पहुंचा, जहां याचिकाकर्ता के वकील सिद्धार्थ गुलाटी ने कोर्ट को बताया कि तहसीलदार का यह कदम हाई कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है। लेकिन कलेक्टर सोनिया मीणा ने राष्ट्रीय हिन्दी मेल से एक सवाल के उत्तर में स्पष्ट किया है कि, वे कभी भी उच्च न्यायालय के आदेशों की अवमानना नहीं कर सकती। अब इसमें जो भी उच्च न्यायालय का निर्देश आएगा वे उसका पालन करेंगी।

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