गुरु दत्त की बर्थ एनिवर्सरी:दरियादिली के लिए मशहूर थे गुरु दत्त, भीड़ में खड़े मास्टर नसीर की तंगहाली देख कुछ ऐसे दूर कर दी थी उनकी परेशानी

हिंदी सिनेमा को ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’, ‘चौदहवी का चांद’, ‘साहिब, बीवी और गुलाम’, ‘बाजी’, ‘आर-पार’, ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’ और ‘सीआईडी’ जैसी एक से बढ़कर एक फिल्में देने वाले गुरु दत्त का जन्म बैंगलोर में शिवशंकर राव पादुकोण व वसंती पादुकोण के घर 9 जुलाई 1925 को हुआ था, उनके बचपन का नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था।
वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण पर बंगाली संस्कृति की इतनी गहरी छाप पड़ी कि उन्होंने अपने बचपन का नाम बदलकर गुरुदत्त रख लिया। 10 अक्टूबर 1964 को गुरुदत्त ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। इस बात से तो सभी वाकिफ हैं कि गुरुदत्त अपने काम को लेकर कितने सजग थे और कितने दरियादिल थे। आज गुरुदत्त की बर्थ एनिवर्सरी पर उनकी दरियादिली से जुड़ा एक किस्सा…

गुरुदत्त अपनी फिल्म ‘कागज के फूल’ का शूट कर रहे थे। लेकिन उस दिन शूट पर कुछ ऐसा हुआ जैसा किसी ने सोचा भी नहीं होगा। दरअसल वहां शूट में एक्स्ट्रा लोग भी खड़े थे और अचानक गुरुदत्त ने एक शख्स के जाकर पैर छू लिए। ये देख सब हैरान हो गए। दरअसल वो शख्स ‘जुबली स्टार’ मास्टर नसीर थे। मास्टर नसीर तंग हालत के चलते ये काम करने को मजबूर थे। लेकिन उन्हें देखते ही गुरुदत्त ने उन्हें अपने डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठा दिया और कहा कि आप कोई छोटा-मोटा काम नहीं करेंगे और आप मुझे फिल्म के लिए गाइड करेंगे। लेकिन गरीबी से मजबूर मास्टर नसीर ने भी कह दिया कि वो ये काम नहीं कर पाएंगे। क्योंकि बिना हाथ पैर चलाए पैसे नहीं मिलेंगे। तो गुरुदत्त ने तुरंत कहा आप सिर्फ यहां कुर्सी पर बैठकर मुझे प्रेरणा देना और हर शाम अपना मेहनताना ले जाना। ये सुनकर मास्टर नसीर की आंखे खुली की खुली रह गई और आंखों में आंसू आ गए थे।

उलझी हुई थी जिंदगी
गुरु दत्त की जिंदगी में खूब उठा पटक रही। उन्हें प्यार में धोखा मिला और वो बेवक्त इस दुनिया को अलविदा कह गए। ऐसा कहा जाता है कि जिस रात उनकी मौत हुई, उससे पहले उन्होंने फोन पर अपनी अलग हो चुकी पत्नी गीता से गुजारिश की, कि उन्हें उनकी बेटी से मिलने दें, लेकिन गीता ने ऐसा करने से इंकार दिया। इसके बाद गुरु दत्त ने खूब शराब पी और फिर ढेर सारी नींद की गोलियां खा लीं। ये दुर्घटना उनकी मौत का कारण बनी हालांकि मौत का कारण क्या था, ये कभी साफ नहीं हो पाया। 10 अक्टूबर 1964 को गुरुदत्त ने दुनिया को अलविदा कह दिया था।