जोगिंद्रनगर में एशिया के सबसे पहले रोपवे पर दौड़ने वाली हेरिटेज ट्रॉली का आधारभूत ढांचा अब नौ दशकों के बाद एक नए रूप में दिखने वाला है। हेरिटेज ट्रॉली के नए आधारभूत ढांचे को मेट्रो की तरह लुक दी जाएगी, जिसमें करीब 15 से 20 लोग एकसाथ सफर कर सकेंगे। इसका लाभ पर्यटकों को भी मिलेगा।
रोपवे के निर्माण कार्य को पूरा करने के लिए पंजाब राज्य विद्युत बोर्ड के इंजीनियरों ने ताकत झोंक रखी है। परियोजना के उच्चाधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार बफर जोन से वींचकैंप तक करीब चार किलोमीटर के ट्रैक को 2250 नए स्लीपरों से चकाचक कर लिया गया है। लोहे और लकड़ी की बनी ट्रॉली को मेट्रो ट्रेन की तरह विकसित करने की तैयारी शुरू कर दी गई है।
लाखों रुपये की धनराशि ट्रॉली के नये स्वरूप पर खर्च की जाएगी। इससे पहले तीन करोड़ रुपये हॉलेज रोपवे के जीर्णोद्धार पर खर्च किए जा चुके हैं। करीब 16 सौ मीटर स्टील रोपवे को भी बदला जा रहा है, ताकि रोमांच का सफर और भी सुरक्षित हो सके। बफर जोन से 18 नवंबर तक करीब डेढ़ किलोमीटर हॉलेज रोपवे पर स्टील रोप को बदलने का कार्य अंतिम चरण पर पहुंच चुका है।
18 नंबर से वींचकैंप तक करीब ढाई किलोमीटर तक स्टील रोप को बदलने की तैयारी है। करीब तीस लाख रुपये रोपवे पर बिछाए जा रहे नए स्टील रोप पर खर्च किए जा रहे हैं। जबकि दस लाख से अधिक की राशि का प्रस्ताव ट्रॉली के ढांचे को बदलने पर खर्च करने की तैयारी है। इस बात की पुष्टि परियोजना के अधीक्षण अभियंता हरीश शर्मा ने की है।
1926 में बने एशिया के पहले रोपवे पर जल्द बरोट तक दौड़ेगी ट्रॉली मंडी जिला के जोगिंद्रनगर के शानन में वर्ष 1926 में स्थापित की गई ट्रॉली को बरोट तक चलाने पर भी परियोजना प्रबंधन ने हामी भरी है। बरोट के खस्ताहाल ट्रैक को चुस्त दुरुस्त कर ट्रॉली बरोट तक पहुंचाने पर भी मंथन शुरू हुआ है।
बता दें कि काउंटर वेट टेक्नोलॉजी से उस दौरान 110 शानन पावर हाउस के निर्माण में इस्तेमाल होने वाली भारी भरकम मशीनरी को बरोट स्थित रेजर वायर में पहुंचाने के लिए इस्तेमाल में लाया गया था। मौजूदा समय में परियोजना के पेन स्टॉक और पाइपलाइन की देखरेख और मरम्मत के लिए ट्रॉली को परियोजना के कर्मचारियों के लिए प्रयोग किया जाता है।