गूलरभोज डैम पहुंचे विदेशी पक्षी, ईको टूरिज्म विकसित करने के लिए हो रही कवायद
हल्द्वानी : तराई के गूलरभोज डैम के वेटलैंड एरिया में प्रवासी पक्षियों के पहुंचने का सिलसिला शुरू होने के साथ अब एक और कवायद शुरू की जा रही है। ताकि राष्ट्रीय स्तर पर इस क्षेत्र को नई पहचान मिले। स्टेट वेटलैंड अथारिटी के माध्यम से संरक्षण को लेकर जल शक्ति मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा जाएगा।
इस प्रस्ताव का मकसद वेटलैंड का ईको टूरिज्म के लिहाज से विकसित करने के साथ जल संरक्षण की दिशा में काम करना भी है। इसके अलावा वन विभाग अपने स्तर से यहां बर्ड वाचिंग कैंप आयोजित करने जा रहा है। ताकि देश भर से पक्षी विशेषज्ञ यहां आकर विविध प्रजाति का दीदार कर सकें और इस जगह को प्रचारित भी करे।
तराई यानी ऊधम सिंह नगर जिले में स्थित गूलरभोज, नानकसगार, तुमडिय़ा डैम, हरिपुरा, बौर, बैगुल व धौरा आदि जलाशयों के पास हर साल अक्टूबर महीने में विदेशी पक्षियों का आगमन शुरू हो जाता है। साइबेरिया, तिब्बत समेत कई देशों से लंबा सफर कर यह पक्षी यहां पहुंचते हैं।
गूलरभोज में जलाशय के आसपास छोटे-छोटे घास के मैदान भी नजर आते हैं। पानी की वजह से यहां नमी बरकरार रहती है। जिस वजह से इन्हें वेटलैंड भी कहते हैं। घंटों में जलाशयों में रहने के अलावा मूड के हिसाब से विदेशी पक्षी यहां भी घूमते हैं। दो साल पहले वन विभाग ने गणना कर 65 प्रजाति के पक्षी ढूंढे थे। जिस वजह से वन विभाग ने अब ऊधम सिंह नगर वेटलैंड संरक्षण योजना तैयार की है।
जिसमें प्रथम चरण में गूलरभोज को शामिल किया गया है। डीएफओ वैभव कुमार के अनुसार स्टेट वेटलैंड अथोरिटी के माध्यम से केंद्रीय मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा जाएगा। स्वीकृति मिलने पर वेटलैंड के संरक्षण को संसाधन मिलेंगे। इससे ईको टूरिज्म को भी बढ़ावा मिलेगा। इस स्थिति में स्थानीय लोगों को स्वरोजगार से भी जोड़ा जा सकेगा।
इन विदेशी पक्षियों का डेरा
इस क्षेत्र में आने वाले प्रवासी पक्षियों में रेड क्रस्टेड पोचार्ड, कामन पोचार्ड, गेड वाल, टफटेड पोचार्ड, रडी शेल्डक, ग्रे लेग गूज, कामन पोचर्ड, फेरुजीनस पोचर्ड, बार हेडेड, यूरेशियन कूट, ग्रेटर कोर्मोरेंट, नार्दन शवलर, नार्दन पिनटेल, नार्दन लैपविंग, एशियन वुलिनेक, लेसर एजुटेंट, सरस क्रेन, ओरियंटल डाटर, ब्लैक नेक्ट स्ट्राक आदि शामिल है।
संरक्षण की दिशा में भी काम होंगे : डीएफओ
तराई केंद्रीय डीएफओ वैभव सिंह ने बताया कि स्टेट वेटलैंड आथोरिटी के माध्यम से प्रस्ताव भेजने की तैयारी की जा रही है। प्रयास है कि इस क्षेत्र को बर्ड वाचिंग जोन के तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिले। अनुमति मिलने पर संरक्षण की दिशा में भी काम होंगे