उजाला सिग्नस रेनबो हॉस्पिटल के डॉक्टरों द्वारा पहली बार सेरेब्रल एंजियोग्राफी की गयी
आगरा: टियर -2 शहरों में टर्टियरी हेल्थ के लिए एक और बेंचमार्क स्थापित करते हुए उजाला सिग्नस रेनबो हॉस्पिटल आगरा ने अपनी पहली सफल सेरेब्रल एंजियोग्राफी की है आगरा और आसपास के क्षेत्रों में की गयी यह अपनी तरह की पहली प्रक्रिया है हॉस्पिटल में डॉक्टरों ने हाई-एंड कैथीटेराइजेशन लैब में चार-वेसेल्स एंजियोग्राफी के माध्यम से इस स्थिति का डायग्नोसिस किया डायग्नोसिस से मरीज में आर्टिरियोवेनस मैलफॉर्मेशन (एवीएम) का पता चल पाया
अलीगंज के 18 वर्षीय सूर्य प्रताप काम करते हुए बेहोश हो गए थे इस कारण उन्हें कस्बे के नजदीकी हॉस्पिटल में ले जाया गया लेकिन उस हॉस्पिटल में समस्या का पता नहीं चल पाया फिर एक परिचित की सलाह पर पीड़ित को आगरा के उजाला सिग्नस रेनबो हॉस्पिटल में ले आया गया जहां सीनियर न्यूरोसर्जन डॉ. आरसी मिश्रा ने मरीज की जांच की डॉ. मिश्रा ने सीटी स्कैन करवाया लेकिन इससे समस्या का पता करने में मदद नहीं मिली।
इसके बाद इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ पल्लव गुप्ता ने रेनबो कार्डियक केयर यूनिट के डॉ विनेश जैन की मदद से हॉस्पिटल की सोफिस्टिकेटेड कैथ लैब में मरीज की डिजिटल सब ट्रैक्शन एंजियोग्राफी (डीएसए) कराने का फैसला किया। डीएसए प्रक्रिया ने मस्तिष्क में नसों या एवीएम की असामान्य वृद्धि की पहचान करने में मदद की। इस केस के बारे में बात करते हुए डॉ पल्लव गुप्ता ने कहा हमने अपने हॉस्पिटल में पहली बार छह वेसेल्स एंजियोग्राफी की है यह ड्यूरल आर्टिरियोवेनस फिस्टुला (डीएवीएफ) और कैरोटिड-कैवर्नस फिस्टुला (सीसीएफ) वाला आर्टिरियोवेनस मैलफॉर्मेशन का एक दिलचस्प केस है। आदरणीय डॉ. आर.सी. मिश्रा सर, डॉ. विनेश जैन सर, और हमारी एनेस्थीसिया टीम को ऐसा करने के लिए विशेष धन्यवाद और बधाई।
डॉ पल्लव गुप्ता ने इस बारे में बात करते हुए कहा यह एक मुश्किल प्रक्रिया होती है और इससे पहले आगरा और आसपास के इलाकों में इस तरह की प्रक्रिया को अंजाम नहीं दिया गया है। इससे इस समस्या से पीड़ित मरीजों को आगरा में ही गुणवत्तापूर्ण इलाज करवाने और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में जाने की जरुरत अब नहीं पड़ेगी। इस प्रक्रिया में एक कैथेटर को आर्टरी (धमनी) में डाला जाता है और एक विशेष डाई को ब्लड वेसेल्स (रक्त वाहिकाओं) में इंजेक्ट किया जाता है जो मस्तिष्क की ओर ले जाती हैं। यह मस्तिष्क में ब्लड फ्लो (रक्त के प्रवाह) के बारे में जरूरी जानकारी प्रदान करने के अलावा नसों या आर्टरीज (धमनियों) में किसी भी रुकावट की पहचान करने में मदद करता है।
कैथेटर एक लंबी, पतली, लचीली ट्यूब होती है जिसे हाथ या पैर की आर्टरी में डाला जाता है। एंजियोग्राफी प्रक्रिया रक्त वाहिकाओं के अंदर की एक्स-रे तस्वीरें प्रदान करती है।
डॉ. गुप्ता ने आगे कहा कि शरीर में तीन प्रकार की रक्त वाहिकाएं होती हैं पहली धमनियां शिराएं और केशिकाएं धमनियों और शिराओं को जोड़ने वाली रक्त वाहिकाओं में अगर कोई असामान्य उलझन जो सामान्य रक्त प्रवाह और ऑक्सीजन के सर्कुलेशन को बाधित करती है तो इसे आर्टिरियोवेनस मैलफॉर्मेशन(एवीएम) कहते है धमनियां ऑक्सीजन युक्त खून को हृदय से मस्तिष्क तक ले जाती हैं जबकि शिराएं ऑक्सीजन रहित रक्त को फेफड़ों और हृदय तक वापस ले जाती हैं।
डॉ गुप्ता ने आगे बताया मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी के पास रक्त वाहिकाओं में किसी भी उलझन या असामान्य बढ़ोत्सेतरी दौरे आ सकते हैं और सिरदर्द हो सकता हैं। हालांकि ये लक्षण एवीएम की समस्या कहाँ पर है और यह कितनी बड़ी है, आदि पर निर्भर करता है। अगर मस्तिष्क में एवीएम की समस्या है, तो सालों तक कोई लक्षण नहीं दिख सकता है, लेकिन जब लक्षण सामने आते हैं, तो ज्यादातर केसेस में स्थिति घातक हो जाती है। एवीएम बीमारी का इलाज मरीज की उम्र, स्थिति और सम्पूर्ण स्वास्थ्य के अनुसार होता है। इलाज का सबसे महत्वपूर्ण पहलू इंटरनल ब्लीडिंग (आंतरिक रक्तस्राव) को रोकना होता है अगर इस ब्लीडिंग को न रोका जाए तो स्ट्रोक और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है। दर्द और दौरे को नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर दवाएं भी लिख सकते हैं। कुछ केसेस में रक्त वाहिकाओं को ठीक करने या प्रभावित जगह पर मास को हटाने के लिए सर्जरी भी की जाती है। हालांकि सर्जरी होगी या नहीं यह एवीएम के प्रकार पर निर्भर करता है।