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बापू की पत्रकारिता के सिद्धांत

अहिंसा के पथ-प्रदर्शक, सत्यनिष्ठा, समाज सुधारक और महात्मा के रूप में विश्वविख्यात बापू सबसे पहले सफल पत्रकार थे। बापू की पत्रकारिता भी उनके गांधीवादी सिद्धांतों की मानिंद है। बापू का स्पष्ट मानना था, पत्रकारिता की बुनियाद सत्यवादिता के मूल में निहित होती है। असत्य की तरफ उन्मुख होकर पत्रकारिता के उद्देश्यों को कभी प्राप्त नहीं किया जा सकता है। बापू का यह दृष्टिकोण इस बात की पुष्टि करता है, उनकी पत्रकारिता और व्यावहारिक जीवन के सिद्धांतों में किसी तरह का दोहरापन नहीं रहा है।
सवाल यह है, क्या आज की वैश्विक पत्रकारिता इन मापदंडों पर खरी उतर रही है। पत्रकारिता में बापू के योगदान की ऐतिहासिकता पर नज़र डालें तो उनकी पत्रकारिता का श्रीगणेश ही विरोध की निज अभिव्यक्ति से हुआ था। दक्षिण अफ्रीका में अखबार को लिखे पत्र को बापू की पत्रकारिता का पहला कदम माना जा सकता है। बापू की प्रखर लेखनी का लोहा मानते हुए एक अंग्रेजी के लेखक ने तो यहां तक कहा, गांधी के संपादकीय लेखों के वाक्य- थॉट ऑफ़ द डे के तौर पर इस्तेमाल किए जा सकते हैं। ऐसी थी, बापू की लेखनी की ताकत। यह बापू की पत्रकारिता के अद्वितीय उदाहरण है। बापू की पत्रकारिता डगर में भाषाई दायरे कभी अवरोध नहीं बने। वह समय और अवसर के अनुकूल हिंदी/ऊर्दू/अंग्रेजी/गुजराती में लेखन कर लिया करते थे। दाएं हाथ से हिंदी/ऊर्दू लिखने वाले बापू बाएं हाथ से शानदार अंग्रेजी लिखते थे।

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