HC बोला- बदलापुर की घटना एनकाउंटर नहीं मान सकते 4 अफसर एक आरोपी को नहीं संभाल पाए, बचाव में पैर पर गोली मारते हैं, सिर में नहीं
बदलापुर में नर्सरी की दो बच्चियों के साथ यौन शोषण के आरोपी अक्षय शिंदे के एनकाउंटर पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा- हम कैसे मान लें कि 4 अफसर एक आरोपी को संभाल नहीं पाए। हथकड़ी भी लगी थी, अगर सेल्फ डिफेंस जैसी स्थिति थी तो आरोपी के पैर पर गोली चलाते हैं।
बेंच ने कहा- अगर गोली चलाने वाला अफसर असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर है, तब वह यह नहीं कह सकता कि उसे रिएक्शन कैसे करना है, इसकी जानकारी नहीं थी। उसे पता होना चाहिए कि फायर कहां करना है।
कोर्ट ने कहा- जैसे ही आरोपी ने ट्रिगर दबाया 4 लोग आसानी से उस पर काबू पा सकते थे। वो कोई बहुत मजबूत आदमी नहीं था। यह स्वीकार करना बहुत मुश्किल है। इसे एनकाउंटर नहीं कहा जा सकता है। अगली सुनवाई 3 अक्टूबर को करेंगे।
अक्षय के पिता ने एनकाउंटर पर बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका लगाई है, जिस पर जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की बेंच सुनवाई कर रही है। अक्षय के पिता ने एनकाउंटर की जांच के लिए कोर्ट से स्पेशल इन्वेस्टिगेटिव टीम (SIT) बनाने की मांग की है।
बॉम्बे हाईकोर्ट के सवाल, राज्य सरकार का जवाब… कोर्ट: जो अफसर अक्षय शिंदे को ले जा रहा था वो ठाणे पुलिस की क्राइम ब्रांच से था?
राज्य सरकार: जी।
कोर्ट: जिस जगह घटना हुई, वो जगह खाली थी या फिर आसपास कॉलोनी और मकान थे?
राज्य सरकार: दाईं ओर पहाड़ियां थीं और बाईं तरफ एक छोटा सा कस्बा था। जैसे ही यह घटना हुई उसके तुरंत बाद अक्षय और घायल पुलिसवाले को अस्पताल ले जाया गया।
कोर्ट: किस अस्पताल ले गए, वो कितनी दूर था?
राज्य सरकार: कलवा के करीब शिवाजी हॉस्पिटल। करीब 25 मिनट का रास्ता था। सबसे करीब अस्पताल यही था।
कोर्ट: जब इतने गंभीर अपराध के आरोपी को ले जा रहे थे तो लापरवाही कैसे हो सकती है। SOP क्या है, क्या उसे हथकड़ी लगी थी?
राज्य सरकार: लगी थी, उसने पानी मांगा था।
कोर्ट: क्या आपने पिस्टल के फिंगर प्रिंट लिए थे?
राज्य सरकार: FSL ने फिंगर प्रिंट लिए थे।
कोर्ट: आप कह रहे हैं कि आरोपी ने 3 गोलियां चलाई थीं, पुलिस जवान को एक गोली लगी, बाकी 2 कहां गईं? आमतौर पर सेल्फ डिफेंस में हम पैर या हाथ पर गोली मारते हैं?
राज्य सरकार: अफसर ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया, उसने खाली रिएक्ट किया।
कोर्ट: हम कैसे मान लें कि गाड़ी में 4 अफसर थे और एक आरोपी को संभाल नहीं पाए?
राज्य सरकार: यह ऑन द स्पॉट रिएक्शन था।
कोर्ट: क्या इसे टाला नहीं जा सकता था? पुलिस ट्रेन होती है। आम आदमी भी यह जानता है कि सेल्फ डिफेंस में पैर पर गोली मारी जाती है? अफसर की डेजिग्नेशन क्या है, जिसने आरोपी को गोली मारी?
राज्य सरकार: वो एक असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर (API) है।
कोर्ट: तब अफसर नहीं कह सकता कि उसे रिएक्शन कैसे करना है इसकी जानकारी नहीं थी, उसे पता होना चाहिए कि फायर कहां करना है। जैसे ही आरोपी ने ट्रिगर दबाया 4 लोग आसानी से उस पर काबू पा सकते थे। वो कोई बहुत मजबूत आदमी नहीं था। यह स्वीकार करना बहुत मुश्किल है। इसे एनकाउंटर नहीं कहा जा सकता है।
राज्य सरकार: नतीजे तक पहुंचने के लिए कुछ स्वतंत्र एजेंसियों से जांच करानी चाहिए। स्टेट सीआईडी और एसीपी इसकी जांच कर रहे हैं।
कोर्ट: क्या आपने पुलिस अफसर के फिंगर प्रिंट लिए? आप सभी अफसरों के फिंगर प्रिंट लीजिए, हम हर एंगल से इस केस को देख रहे हैं। फॉरेंसिक टीम का इंतजार करने की बजाय आपको अपने तरीके से फिंगर प्रिंट लेने चाहिए थे। CCTV फुटेज कहां हैं?
राज्य सरकार: हमने रास्ते में ही सरकारी और निजी बिल्डिंगों के फुटेज सुरक्षित रखने को कह दिया था।
कोर्ट: हमें एक और चीज चाहिए। फॉरेंसिक टीम से कहिए कि पता लगाए कि आरोपी को गोली दूर से मारी गई थी या पॉइंट ब्लैंक रेंज से। उसे गोली कहां लगी? भले ही इसमें पुलिसवाले इन्वॉल्व हों, लेकिन हम मामले की निष्पक्ष जांच चाहते हैं। हम शक नहीं कर रहे, लेकिन हमें सच्चाई चाहिए। क्या कोई FIR आरोपी के पिता ने दाखिल की है?
राज्य सरकार: नहीं।
कोर्ट: हथियारों को सही तरह से सीज कर दिया है ना?
राज्य सरकार: जी ये FSL को भेज दिए गए हैं।
अक्षय के पिता: घटना से एक दिन पहले POCSO के तहत केस दर्ज किया गया था। हम शव को दफनाना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए जगह नहीं मिल रही है।
कोर्ट: पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से ऐसा लगता है कि गोली पॉइंट ब्लैंक रेंज से मारी गई है। क्या आरोपी को कोई हथियार दिया गया था। आप कह रहे हैं कि उसने पिस्टल छीनी थी?
राज्य सरकार: कोई हथियार नहीं दिया गया था। उसने पिस्टल छीनी नहीं थी, ये हाथापाई के दौरान गिर गई थी।
कोर्ट: हम चाहते हैं कि आरोपी को जेल से निकालने से लेकर उसे अस्पताल में मृतक घोषित किए जाने तक के CCTV फुटेज सुरक्षित रखे जाएं।