केन्द्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान की बढ़ सकती हैं मुश्किलें क्योंकि व्यापमं घोटाला में 45 परिवहन आरक्षकों की नियुक्तियां 12 साल बाद निरस्त, कांग्रेस ने मांगा शिवराज-देवड़ा का इस्तीफा
मध्यप्रदेश में व्यापम घोटाला 700 साल तक भी समाप्त नहीं हो सकता क्योंकि व्यापम घोटाले में जिन लोगों ने अपनी जिंदगी खराब की है, जिन लोगों के कैरियर बर्बाद हुए हैं उसमें भी ज्यादातर महिलाएं हैं उनकी बददुआएं व्यापक घोटाले के आरोपियों का पीछा तब तक नहीं छोड़ेंगी जब तक उन्हें संपूर्ण न्याय नहीं मिलेगा। इसी के चलते पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में व्यापम घोटाले से हुई भर्तियां तथा चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में मेडिकल कालेज की भर्तियों में हुए घोटाले से अब पर्दा उठने लगा है। और इसकी शुरुआत सबसे पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में व्यापम घोटाले से हुए 45 परिवहन आरक्षकों की भर्तियों को उच्च न्यायलय में निरस्त करते हुए परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप से तत्कालीन शिवराज सरकार को दोषी करार दे दिया है। इसी के चलते मध्यप्रदेश के परिवहन विभाग में 12 साल पहले भर्ती किए गए 45 कॉन्स्टेबलों की नियुक्तियां निरस्त कर दी गई हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राज्य के परिवहन सचिव सीबी चक्रवर्ती ने 19 सितंबर को इसका आदेश जारी किया, जो आज संज्ञान में आया है। बता दें कि जब परिवहन आरक्षकों का भर्ती घोटाला हुआ था तब कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह तथा नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह ने भी सार्वजनिक रूप से इस घोटाले के लिए वर्तमान केन्द्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान के परिवार पर संदेह व्यक्त किया था मतलब सुप्रीम कोर्ट के विद्धान अधिवक्ता विवेक तन्खा कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य होने के नाते भी यदि इस फैसले के खिलाफ सार्वजनिक रूप से टीका-टिप्पणी करेंगे तो शिवराज सिंह चौहान की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। बता देंं कि कांग्रेस ने मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और तत्कालीन परिवहन मंत्री जगदीश देवड़ा का इस्तीफा मांगा है, जबकि उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा के सूत्रों का कहना है कि इस मामले में वे बिल्कुल दोषी नहीं हैं। कौन दोषी है इस बात को तत्समय परिवहन आयुक्त रहे वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अच्छी तरह जानते हैं। बता दें कि साल 2012 में 52 परिवहन आरक्षकों की भर्ती की गई थी। इस भर्ती प्रक्रिया में महिलाओं के लिए आरक्षित पदों पर पुरुष उम्मीदवारों की नियुक्तियां की गई थीं। मामले को लेकर हिमाद्री राजे ने साल 2013 में हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में याचिका दायर की थी। अदालत ने 2014 में फैसला सुनाते हुए पुरुष कॉन्स्टेबल्स की नियुक्तियों को अवैध माना था। इस फैसले को मध्यप्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को सही मानते हुए इन नियुक्तियों को रद्द करने का आदेश दिया था। इस पर सरकार की ओर से कार्रवाई नहीं होने पर हिमाद्री राजे ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका लगाई है। परिवहन आरक्षक घोटाले में याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि एमपी हाईकोर्ट ने 2013 में 52 नियुक्तियों को गलत मानते हुए सरकार को नए सिरे से विज्ञापन निकालकर भर्ती करने के आदेश दिए थे। 2014 में शिवराज सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने एमपी हाईकोर्ट के फैसले को सही मानते हुए सरकार की अपील याचिका खारिज कर दी थी। फिर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन लगाई लेकिन कोर्ट ने वह भी खारिज कर दी।याचिकाकर्ता के वकील ने न्यायालय की अवमानना का मामला दायर किया। एक महीने के कंटेम्प्ट पर सरकार से सुप्रीम कोर्ट ने 4 हफ्ते में जवाब मांगा है। इसी दौरान परिवहन विभाग ने 45 नियुक्तियों को निरस्त कर दिया। उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता हिमाद्री राजे खुद परिवहन आरक्षक के लिए आवेदन करना चाहतीं थीं लेकिन भर्ती की शर्तों में पुरुष उम्मीदवार की तरह ऊंचाई, सीने के माप जैसी अहर्ताएं पूरी ना कर पाने के कारण वे फॉर्म ही नहीं भर पाई थी। उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उनकी याचिका पर करीब 12 साल बाद सरकार को कार्रवाई करनी पड़ी। कांग्रेस नेता केके मिश्रा ने बुधवार को वीडियो जारी कर कहा, ‘व्यापमं के अलग-अलग मामलों में करीब 48 एफआईआर दर्ज हुई थीं। इनमें आखिरी एफआईआर हमारे दबाव में 39 उम्मीदवारों पर दर्ज की गई थी। आरक्षण नियमों का पालन न करते हुए तत्कालीन परिवहन मंत्रालय ने बकायदा चयनित परिवहन आरक्षकों को उनके फिजिकल टेस्ट नहीं कराए जाने का पत्र भी जारी किया था।’ पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और तत्कालीन मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा ने जांच एजेंसियों- एसटीएफ, एसआईटी और सीबीआई को आरोपों से संबंधित दस्तावेज भी सौंपे थे। इस विषय में तत्कालीन परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने 23 जून 2014 को भर्ती में धांधली के आरोपों को झूठा बताया। कहा- सभी परीक्षाओं में चयन पारदर्शी तरीके से हुआ है। इस विशेष रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह है कि, जिस बारूद के ढेर पर व्यापम घोटाला विराजमान है वह बारूद का ढेर अब फट गया है। इसका जीता जागता उदाहरण है हाईकोर्ट के आदेश पर परिवहन विभाग और परिवहन मंत्रालय का ताजा आदेश जिसमें उन्होंने 45 परिवहन आरक्षकों की भर्ती को निरस्त करते हुए यह प्रमाणित कर दिया है कि, मप्र में शिवराज सरकार के जमाने में तत्कालीन शिखर की नौकरशाही की कोटरी द्वारा जो भी गलत निर्णय लिए गए हैं उन सबसे पर्दा उठेगा ऐसा माना जाए तो चौंकिएगा मत। लेकिन चौकिएगा तब जब वर्तमान में मोहन सरकार चाहे शराब घोटाला हो, चाहे गणवेश घोटाला या फिर भर्ती घोटाला हो या फिर नर्सिंग घोटाला हो सबकी जांच के लिए कोई नया जांच आयोग बना दें।