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देश के 13 नदी क्षेत्रों के संरक्षण की सबसे बड़ी डीपीआर तैयार, 19 लाख वर्ग किमी क्षेत्रों में होंगे कार्य

देहरादून। नदियां न सिर्फ हमारी सभ्यता का आधार रही हैं, बल्कि जन से लेकर जंगल के जीवन को बचाए रखने में इनका सबसे बड़ा योगदान है। समय के साथ नदी पारिस्थितिक तंत्र सिकुड़ रहे हैं और जल संसाधन घट रहे हैं। जिसके चलते जल संकट बढ़ रहा है और जलवायु परिवर्तन से लेकर सतत विकास के राष्ट्रीय लक्ष्य हासिल करने में चुनौती पेश आ रही है। हालांकि, राहत की बात यह है कि नदियों के पारिस्थितिक तंत्र को बचाने व संवारने की दिशा में अब तक की सबसे बड़ी डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार कर दी गई है। इसमें देश की 13 नदियों के संरक्षण की विस्तृत कार्ययोजना शामिल है।

सोमवार को नई दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने डीपीआर का विमोचन किया। डीपीआर के मुताबिक, संरक्षण कार्य 13 नदियों के 18.90 लाख वर्ग किलोमीटर बेसिन क्षेत्रों में किए जाएंगे। वहीं, परियोजना के तहत 13 नदियों की कुल 202 सहायक नदियों की 42.83 हजार किलोमीटर लंबाई को भी शामिल किया गया है।

भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आइसीएफआरई) के महानिदेशक एएस रावत के मुताबिक, नदी क्षेत्रों के संरक्षण के लिए नदी के हिसाब से कुल 13 डीपीआर तैयार की गई हैं। साथ ही कुल 283 उपचार माडल तैयार किए गए हैं। इसमें कृषि क्षेत्र में 97 व शहरी भूदृश्य (लैंडस्केप) में 116 माडल शामिल हैं।

विभिन्न हितधारकों से परामर्श लेकर मिट्टी व नमी संरक्षण समेत घास व जड़ी-बूटियों व बागवानी संबंधी पौधों का भी वृहद स्तर पर रोपण किया जाएगा। नदी क्षेत्रों में रहने वाले निवासियों की जरूरतों की पूर्ति के लिए काष्ठ व ईंधन के लिहाज से भी पौधों का रोपण किया जाएगा। इस अवसर पर जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे, सचिव लीना नंदन, महानिदेशक वन सीपी गोयल, महानिरीक्षक प्रेम कुमार झा, आरके डोगरा आदि उपस्थित रहे।

इन नदी क्षेत्रों में होंगे काम

यमुना, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास, सतलुज, ब्रह्मपुत्र, लूनी, नर्मदा, गोदावरी, महानदी, कृष्णा, कावेरी।

 

संरक्षण कार्यों में 19.34 हजार करोड़ रुपये आएगा खर्च

डीपीआर के मुताबिक, कार्य करने में 19.34 हजार करोड़ रुपये के खर्च का आकलन किया गया है। हालांकि, बजट की गणना वर्ष 2019-20 की लागत के अनुरूप की गई है। डीपीआर पर आइसीएफआरई ने वर्ष 2019 में ही काम शुरू किया था।

राज्य के वन विभाग होंगे नोडल एजेंसी

तय किया गया है कि डीपीआर पर काम करने के लिए राज्यों के वन विभाग को नोडल एजेंसी नामित किया जाए। राज्यों के रेखीय विभागों को भी सहयोग के लिए शामिल किया जा सकता है। साथ ही परियोजना को लेकर स्थानीय बोली-भाषा में नियमावली तैयार करने का सुझाव दिया गया है।

नदी क्षेत्रों में बढ़ेंगे सात हजार वर्ग किमी वन

डीपीआर के मुताबिक, 13 नदी क्षेत्रों में 7417.36 वर्ग किमी वन क्षेत्रों का इजाफा होने की उम्मीद है। वनों के 10 साल की अवधि पूरी करने पर हर साल 50.21 मिलियन टन कार्बन डाईआक्साइड को सोखने में मदद मिलेगी। इसी तरह 20 साल की अवधि में कार्बन डाईआक्साइड सोखने की दर 74.76 मिलियन टन हो जाएगी।

1889 मिलियन घन मीटर भूजल पुनर्भरण होगा

आकलन किया गया है कि संरक्षण कार्यों के बाद भूजल पुनर्भरण (रीचार्ज) में हर साल 1889.89 मिलियन घन मीटर की मदद मिलेगी। इसी तरह मिट्टी के क्षरण में 64.83 लाख घन मीटर सालाना कमी आएगी

449 करोड़ की आय उत्पन्न होगी

अनुमान लगाया गया है कि अकाष्ठ व अन्य वन उपज से सालाना 449 करोड़ रुपये से अधिक की आय उत्पन्न की जा सकती है। वहीं, पर्यटन, ईको टूरिज्म व अन्य संसाधन विकसित होने से करीब 34 करोड़ मानव दिवस का रोजगार भी दिया जा सकेगा।

पेरिस समझौते को पूरा करने में मिलेगी मदद

आइसीएफआरई के महानिदेशक एएस रावत के अनुसार, पेरिस समझौते के मुताबिक वृक्ष आवरण के माध्यम से वर्ष 2030 तक 2.5 से 03 बिलियन टन कार्बन डाईआक्साइड उत्सर्जन को कम करना है। नदी संरक्षण के कार्यों के माध्यम से इस लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी।

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