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फटती ज़मीन, दरकते पहाड़:जोशी मठ से उठती दरारें, सरकार के माथे पर चिंता की लकीरें क्यों नहीं खींचतीं?

जोशी मठ। उत्तराखण्ड का वह पवित्र नगर, जहाँ शीत ऋतु में भगवान बद्रीनाथ विराजते हैं। विकास या कहे अंग विकास, पौराणिकता, खड़िया और संस्कृति को किस तरह विनाश की ओर ले जाता है, जोशी मठ इसका सजीव उदाहरण है। सालों से यहां के लोग, कुछ जानकारियां और पर्यावरणविद, सरकार से गहरा महसूस कर रहे हैं, लेकिन किसी के सामने नहीं पहुंच पाते।

क्रैक्स, टनल्स की बड़ी शुरुआत में कई क़स्बे डूब चुके हैं। इंजीनियर ने जोशी मठ के साथ तो हद ही कर दी। जोशी मठ के ठीक नीचे टनल निकाल दी गई। इसे तपोवन बांध की सुरंग कह सकते हैं। जिस पहाड़ पर यह नगर बसा है, वह नीचे खिसक रहा है। कई मकान धंस गए। कई में दरार आ चुकी है। बीच रास्ते बड़े-बड़े होल निकल आए।

फ्रिज में लंबी, गहरी दरारें पड़ गई हैं। इन दरारों में से मलबा ऊपर आ रहा है। दरअसल तपोवन बांध की टनल जोशीमठ के नीचे से होते हुए हेलंग घाटी में अलकंदा में नदी खुलती है लेकिन पिछले साल जब ऋषि गंगा में बाढ़ आई थी तो बड़ी मात्रा में मलबा इस टनल में घुस गया था। इसकी वजह से अलकनंदा में जहां यह टनल खुलती थी वहां से इसका मुंह बंद हो गया।

मलबा या पानी वहाँ से निकल नहीं पा रहा है। कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि इसी वजह से टनल में गैस बन रही होगी और उसी के अंदर मलबे को ऊपर की तरफ फेंका जा रहा होगा, जो फूट कर जोशी मठ में निकल रहा है। यहाँ के लोगों को यहाँ बसाया जा रहा है। कई लोग पुरखों के बने मकान को किराए पर लेने के लिए किराए पर लेने के लिए मजबूर हैं। उनके आंगन के मुंह पर दरारें उभर कर आती हैं। उनकी रसोई से चीखें निकल रही हैं। उनके चूल्हे पड़े हुए फाँक रहे हैं।

सरकार और प्रशासन की हालत यह है कि जब भी कभी कोई बड़ी दरार उभरती है या कोई बड़ा छेद निकलता है तब कुछ अफ़सर यहां का दौरा कर लेते हैं। भीड़ते हैं और कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। बाद में यहां के लोगों ने उन्हें हाल पर छोड़ दिया।

वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा ही चलता रहेगा, या कोई उचित कदम शीघ्र नहीं उठाया गया तो जोशी मठ जैसा पौराणिक नगर मटियामेट हो जाएगा। लोगों को भले ही शोक-उदर बस दिया जाए, लेकिन एक मिथक से हम हाथ धो बैठेंगे। वैज्ञानिक कहते हैं जोशीमठ वास्तव में मोरेन के ऊपर बसा है। मोरेन ग्लेशियर का ऊपरी भाग होता है।

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