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सचिन-लारा से नहीं सहवाग से लगता था डर:मुरलीधरन ने कहा- तेंदुलकर रन बनाने में समझदारी दिखाते थे, लेकिन वीरू बड़े-बड़े शॉट्स खेलते थे

सचिन तेंदुलकर और ब्रायन लारा विश्व क्रिकेट के दो ऐसे नाम रहे हैं, जिनके सामने गेंदबाजी करने में अच्छे से अच्छे गेंदबाज को डर लगता था। मगर पूर्व दिग्गज स्पिन गेंदबाज मुथैया मुरलीधरन का ऐसा कहना है कि उन्हें सचिन या लारा बिल्कुल डर नहीं लगता था क्योंकि वह वीरेंद्र सहवाग की तरह नुकसान नहीं पहुंचाते थे।

तकनीक के साथ खेलते थे सचिन
मुरलीधरन ने ईएसपीएन-क्रिकइंफो पर आकाश चोपड़ा से बात करते हुए कहा- सचिन को गेंदबाजी करते हुए किसी तरह का डर नहीं था क्योंकि वह आपको सहवाग की तरह चोट नहीं पहुंचा सकते थे। मुझे इसका एहसास है क्योंकि सहवाग आपकी बहुत पिटाई कर सकते थे। सचिन आपको नुकसान नहीं पहुंचाते थे, लेकिन उन्हें आउट करना मुश्किल था, क्योंकि वह अपना विकेट बचाते थे और वह गेंद को अच्छे से पढ़ सकते थे।

हमेशा निडर रहते थे वीरू
इंटरनेशनल क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले मुरलीधरन ने आगे कहा- वीरेंद्र सहवाग हमेशा निडर होकर बल्लेबाजी करते थे। भले ही वे दिन की पहली गेंद खेल रहे हों या फिर 98 या 99 रन पर बल्लेबाजी कर रहे हों, वे हमेशा खराब गेंद को बाउंड्री पार भेजने के लिए तैयार रहते थे।

सहवाग के लिए रखते थे डीप फील्डर्स
मुरली के मुताबिक ब्रायन लारा को गेंदबाजी करना भी आसान नहीं था, लेकिन फिर भी वो आपका सम्मान करते थे। मगर सहवाग के साथ ऐसा नहीं था। मुरली ने कहा- सहवाग के लिए हम डीप फील्डर्स रखते थे। मुझे पता था कि वे चांस लेंगे। ब्रायन लारा की तरह नहीं कि वे आपका सम्मान करेंगे, लेकिन वीरेंद्र सहवाग के मामले में ऐसा नहीं था।

2 घंटे में बना सकते थे 150 रन
इस बात में कोई शक नहीं है कि वीरेंद्र सहवाग दुनिया के सबसे खतरनाक बल्लेबाजों में से एक थे। सहवाग अपनी ताबड़तोड़ बल्लेबाजी से मैच की तस्वीर को बदलकर रख देते थे। मुरलीधरन ने 8 बार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सहवाग को अपना शिकार बनाया।

मुरली के अनुसार- सहवाग का मानना होता था कि उनके पास दो घंटे हैं और उनको 150 रन बनाने हैं। उनका एटिट्यूड ऐसा होता था। अगर मैं एक दिन खेल गया तो मैं 300 रन बना सकता हूं। ऐसे में अगर वो लंच के बाद आउट हो जाते थे तो भी 150 रन बना देते थे। उनका स्वभाव ऐसा था। वह ये भी नहीं सोचते थे कि वे 94 पर बल्लेबाजी कर रहे हैं या 98 पर। ऐसे में बाकी बल्लेबाज एक या दो रन लेने की सोचते थे, लेकिन सहवाग छक्का जड़ने की सोचते थे। उनको इस बात की परवाह नहीं होती थी कि उनका शतक पूरा होगा या नहीं। वे गिलक्रिस्ट और सनथ जयसूर्या की तरह मैच विनर थे।

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